31. तब नीलिमा देवी ममत्व के साथ राजकुँवर के सिर पर हाथ फेरती हुई बोली-बेटा, एक बात ध्यान रखना। 32. राजकुँवर ने पिता का चरण-स्पर्श किया तो वह गदगद होकर आशीर्वाद देते हुए बोले-युग-युग जीओ और अफसर बनो।33. तब राजकुँवर उन्हें सांतवना देते हुए बोला-माँ, आप ये कैसी बातें कर रही है? मैं आपका बेटा हूँ। 34. यह सुनकर राजकुँवर बोला-चाचाजी आप ठीक कहते हैं लेकिन, जल्दबाजी में कोई छोटी-मोटी नौकरी करके जीवन बर्बाद न करूँगा। 35. शाम को किसी तरह घर ले जाता, एक दिन उसे राजकुँवर ने देख लिया और ज़िद ठान ली... 36. “ राजकुँवर गर्व के साथ उत्तर देती है-”, सासूजी हम धोबी वारी धीय राजकुँवरि म्हारौ नाम है.. 37. मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ, तुम शहजादी रूपनगर की हो भी गया प्रेम हम में तो, बोलो मिलन कहाँ पर होगा..? 38. अगर कभी राजकुँवर के विवाह की कहीं बात चलती तो लड़की वाले साफ कह देते-भाई, मँहगाई का जमाना है। 39. इसलिए हृदय पर पत्थर रखकर राजकुँवर की शिक्षा-दीक्षा के लिए कलेजे के टुकड़े को अपने देवर उमाशंकर के पास भोपाल भेज दीं। 40. मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ तुम शहज़ादी रूप नगर की हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहाँ पर होगा?