उनके गुरु रैवत ने उन्हें बतलाया कि भारत में केवल लंका से मूल पालि त्रिपिटक ही आ सकता है, उनकी महास्थविर महेंद्र द्वारा संकलित अट्टकथाएँ सिंहली भाषा में लंका द्वीप में विद्यमान हैं।
32.
• पुराणों में चौदह मन्वंतर इस प्रकार हैं-1. स्वायंभुव, 2. स्वारोचिष, 3. उत्तम, 4. तामस, 5. रैवत, 6. चाक्षुष, 7. वैवस्वत, 8.
33.
इन्द्रियों के अभिमानी देवो के समान ही स्पर्श रूप रस गन्ध आदि तत्वों के अभिमानी अपान व्यान उदान आदि वायु देवों की सृष्टि हुयी । रैवत । चाक्षुष । स्वरोचिष । उत्तम । ब्रह्मसावर्णि । रुद्रसावर्णि । देवसावर्णि । दक्षसावर्णि । धर्मसावर्णि आदि मनु हुये ।
34.
कुंडली में लगन को नारायण और अलावा भावों को ग्यारह रुद्रों के रूप में जाना जाता है, उनके नाम इस प्रकार से हैं-अजैकपात, अहिर्बुन्ध, कपाली, हर, बहुरुप, त्र्यम्बक, अपाराजित, वृषाकपि, शम्भु, कपर्दी और रैवत ।
35.
वे सब मथुरा छोड़कर रैवत पर्वत के समीप कुशस्थली पुरी (द्वारिका) में जाकर बस गए।-महाभारत मौसल-14.43-50 भौमासुर से युद्ध: इस पलायन के दौरान हिमालय जिसे देवलोक कहा जाता था वहाँ भौमासुर का राज्य हो चला था जो देवताओं को सताया करता था।
36.
* चौदह मनु: ब्रह्मा के पुत्र स्वायंभुव, अत्रि के पुत्र स्वारोचिष, राजा प्रियव्रत के पुत्र तापस और उत्तम, रैवत, चाक्षुष, सूर्य के पुत्र श्राद्धेदंव (वैवस्वत), सावर्णि, दक्षसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, धर्मसावर्णि, रुद्रसावर्णि, देवसावर्णि, चंद्रसावर्णि।
37.
[[चित्र: Dauji-Temple-Baldev-6. jpg | [[बलदेव मन्दिर | दाऊजी मन्दिर]], [[बलदेव]] | thumb | 250 px]] ==== u > अवतार का आयोजन / u > ==== तब ज्योतिस्मती आनर्त देश के राजा रैवत कन्या रेवती की देह में विलीन हो गई।
38.
कुंडली के भावों में पहला विष्णु का पांचवां ब्रह्मा का और नवां शिव का, उसी प्रकार से दूसरा अजैकपाद, छठा त्र्यम्बक का और दसवां रैवत का माना जाता है, तीसरा अहिर्बुन्ध का सातवां अपाराजित और ग्यारहवां वृषाकपि का माना जाता है, चौथा शम्भु आठवां कपाली और बारहवां भाव कपर्दी का माना जाता है, इन्ही नामों के अनुसार कालसर्प दोषों का वर्गीकरण किया गया है।
39.
शार्यती अर्नत (पुत्र) सुकन्या (पुत्री) रैव (अन्र्त देश का राजा बना कुश स्थली (द्वारका) महर्षि च्यवन की पत्नी रैव के पुत्र रैवत (ककुद्यी) / (ब्रह्मा जी के पास गए / इस वीच यादवो ने राज्य हड़प लिया / इसका नाम यदुवंशी ने द्वारवती नाम रखा) / भोज / वृष्ण और अन्धक वंश के वासुदेव आदि रक्षा किया करते थे.
40.
अपने देश में हेमाद्रि संकल्प में की गयी सृष्टि की व्याख्या के आधार पर इस समय स्वायम्भुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत और चाक्षुष नामक छह मन्वन्तर पूर्ण होकर अब वैवस्वत मन्वन्तर के २ ७ महायुगों के कालखण्ड के बाद अठ्ठाइसवें महायुग के सतयुग, त्रेता, द्वापर नामक तीन युग भी अपना कार्यकाल पूरा कर चौथे युग अर्थात कलियुग के ५ ० ११ वें सम्वत् का प्रारम्भ हो रहा है।
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