31. लोक- मन ऐसा यात्री है, जो अनवरत चलता है, अथक अविश्रान्त ।32. आत्मा-परमात्मा, जन्म-मरण, लोक- परलोक वास्तविक ज्ञान का आधार विद्या है। 33. लोक- लोकान्तर के सत्य पलक झपकते ही भाव चक्षुओं के सामने आ विराजते हैं।34. लोक- परलोकके यावत् सुख और भोगोंके प्रति पूर्ण विरिक्ति बिना बैराग्य दृढ़ नहीं होता।35. हरियाणी में केवल लोक- साहित्य है जिसका कुछ अंश प्रकाशित हो भी चुका है। 36. अनंतर ग्रह-नक्षत्रों और लोक- लोकांतरों में ही चेतना सव्रव्याप्त, सत् और चेतनशील है। 37. आपके कमरे में अर्धनग्र स्त्रियों के नहीं वरन् लोक- सेवी महापुरुषों के चित्र होने चाहिए। 38. कुछ विद्वानों का मत है कि ये दोहे मध्यदेश या ब्रज में लोक- प्रचलित थे। 39. कुछ विद्वानों का मत है कि ये दोहे मध्यदेश या ब्रज में लोक- प्रचलित थे। 40. ये लोग न तो लोक-चेतना को समझ सकते थे, न लोक- सेवा को ।