31. जिधर-जिधर उर्वशी घूमती, देव उधर चलते हैं तनिक श्रांत यदि हुई व्यजन पल्लव-दल से झलते हैं. 32. पसीने से लथ-पथ शरी र... श्रांत होकर सुबह उठना... निर्वाक्, इधर से उधर डोलना... 33. भटक-भटक कर थका चूर है, घर सुदूर है, श्रांत मन, चल शांत हो अब लौट चल... 34. आ मेरे प्यारे तृषित! श्रांत ! अंत:सर में मज्जित करके, हर लूंगी मन की तपन चान्दनी, फूलों से सज्जित करके. 35. शिवाजीको पराभूत कर शीघ्र ही उसका प्रदेश अधिकारमें करता हूं ', ऐसा समाचार बादशाहको लिखते लिखते श्रांत हो गया । 36. वे कहते हैं कि बेतवा की यह जन्मभूमि वस्तुतः हमारे जैसे श्रांत पथिक के लिए एक अद्भुत, आनन्ददायक सुखकर भूमि थी। 37. उनकी कविता की आरंभिक पंक्तियां हैं-“ मेरे गीत हर्ष या आल्हाद के नहीं जिनसे श्रांत भुजाओं में स्फूर्ति आ जाये। 38. इस पथ का उद्देश्य नहीं है श्रांत भवन में टिक रहना, किंतु पहुंचना उस सीमा तक जिसके आगे राह नहीं है 39. “बता, क्या लिखू तेरे मुक्क़दर मे....?” उस मुकाम की ख़्वाहिश है..!! इस पथ का उद्देश्य नहीं है, श्रांत भवन में रुक जाना । 40. पृष् ठ 179 पर ‘ मधुसूदन मुदित मनोजम ' में रति सुख श्रांत राधा-कृष् ण की परस्पर लीनता इस संदर्भ में द्रष्टव्य है।