इस संस्कार में शरीर के संवेदनशील अंगों को अति स्पर्शन या वेधन [नुकीली चीज़ से दबाव] द्वारा जागृत करके थेलेमस तथा हाइपोथेलेमस ग्रंथियों को स्वस्थ करते सारे शरीर के अंगों में वह परिपुष्टि भरी जाती है कि वे अंग भद्र ही भद्र ग्रहण हेतु सशक्त हों.
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हमें ज्ञान कराने वाली पाँच इन्द्रियाँ है-चक्षु (देखना), श्रोत्र (सुनना), घ्राण (सूंघना), रसन (स्वाद), स्पर्शन (स्पर्श का अनुभव करना) इन पाँचो शक्तियों के अलग-अलग अधिष्ठान अंग होते हैं-आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा।
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एक एक इन्द्रिय के विषय में फंसकर प्राणी दुर्गति पाते हैं-घ्रानेन्द्रिय के कारण भ्रमर कमल के फूल में कैद हो जाता है, चक्षु इन्द्रिय के कारण पतंगे दीपक की लौ में जलकर मर जाते हैं, स्पर्शन इन्द्रिय के लोभ में हाथी मारा जाता है, रसनेन्द्रिय के कारण [...]
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१ ० ८. ३ २ (गोमय व गोमूत्र आहरण के लिए गौ के उत्थापन का निर्देश), ६. ७. ३ ८ (विष्णु व जालन्धर के युद्ध में शुक्राचार्य द्वारा मृत असुरों का जल से स्पर्शन तथा हुंकार से प्रबोधन करने पर मृत असुरों के उत्थापन का कथन), ६.
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