31. हम यज्ञ केवल इसको मानते हैं कि मंत्रोच्चारपूर्वक अग्नि में कुछ हव्य सामग्री का होम करें। 32. पितृदेवों का रूप धारण कर आप ही हव्य और कव्य भागों का भोग करते हैं । 33. अग्नि देवों का हव्य और पितरों का कव्य, यह दोनों ही ले जाने का माध्यम है। 34. अग्नि देवों का हव्य और पितरों का कव्य, यह दोनों ही ले जाने का माध्यम है। 35. किस प्रयोग के लिये किस प्रकार की हव्य वस्तुयें होमी जाती हैं, उनका भी विज्ञान है। 36. अग्नि को अदृश्य देवों का प्रतिनिधि माना गया है जिसके माध्यम से उन्हें हव्य प्राप्त होता है । 37. होमीकृत औषधियों एवं अन्य हव्य पदार्थों से संस्कारित भस्म को मस्तक तथा हृदय पर धारण किया जाता है। 38. अब हमें इस जन्म की पूर्णाहुति में पाँच हव्य सम्मिलित करने पड़ेंगे, वे इस प्रकार हैं: 39. अतः हव्य और काव्य (यज्ञ और श्राद्ध) मे कंही भी ब्राह्मण निंदा के योग्य नही है । 40. इसमे शक्तिसंपन्न हव्य को स्पष्ट करते हुये बताया गया की वह शक्तिसम्पन्न हव्य “वृषभां”-“बैल” नहीं बल्कि बलकारक&