पक्षी, सांप, मगर, मछली तथा कछुए और अन्य जो इस प्रकार के स्थल में उत्पन्न होने वाले और जल में उत्पन्न होने वाले जीव हैं, वे अण्डज अर्थात् अण्डे में से उत्पन्न होते हैं।
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अण्डज वो जीव होते हैं जो अंडे देते हैं और जिनके भ्रूण का विकास माता के गर्भ में नहीं होता, सिर्फ कुछ अपवादों में ही इनके भ्रूण का विकास माता के शरीर् में आंशिक रूप से होता या है।
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अण्डज वो जीव होते हैं जो अंडे देते हैं और जिनके भ्रूण का विकास माता के गर्भ में नहीं होता, सिर्फ कुछ अपवादों में ही इनके भ्रूण का विकास माता के शरीर् में आंशिक रूप से होता या है।
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श्रीरामचन्द्रजी ने कहाः महर्षे, चंचल आकारावाले जरायुज, अण्डज, स्वेदज और उदभिज्ज-इन चार शरीरों से पूर्ण और नाना प्रकार के कर्तव्यभाररूपी तरंगों से युक्त संसारसागर में मनुष्य जन्म पाकर भी बाल्यावस्था में केवल दुःख ही मिलता है।
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क्योंकि ग्यानीजन अच्छी तरह जानते हैं कि ये मानव देह हमें चार प्रकार की (अण्डज, पिण्डज, ऊश्मज, स्थावर) चौरासी लाख योनियों को जो कि लगभग साढे बारह लाख साल में भोगी जाती है, के बाद मिलता है.
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इसके अर्थ पैदा होना, वंशज, अवतीर्ण, उद्भूत आदि अत्रिनेत्रज, कुलज, जलज, छत्रियज, अण्डज, उदभिज आदि के अर्थों सहित पिता (जनक) उत्पत्ति जन्म, विष, विजेता (विजयी) कांति प्रभा, विष्णु आदि का भी समानार्थक है।
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भावार्थ:-चौरासी लाख योनियों में चार प्रकार के (स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज, जरायुज) जीव जल, पृथ्वी और आकाश में रहते हैं, उन सबसे भरे हुए इस सारे जगत को श्री सीताराममय जानकर मैं दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ॥ 1 ॥
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आजकर हिन्दी में चिड़िया के पर्याय में प्रायः पक्षी शब्द का प्रयोग होता है, खग शब्द का भी प्रयोग कर लिया जाता है किन्तु पक्षी के लिए हिन्दी में और भी बहुत से पर्यायवाची शब्द हैं, जो हैं-विहंग, विहग, विहंगम्, शकुन, शकुन्ति, शकुनि, शाकुन्त, द्विज, अण्डज आदि।
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अनुकर्म िफर आप अपनी मायाशिक्त से रचे हुए इन जरायुज, अण्डज, स्वेदज और उदिभज्ज भेद से चार पर्कार मधुमिक्खयाँ अपने ही उत्पन्न िकये हुए मधु का आस्वादन करती हंै, उसी पर्कार वह आपका अंश उन शरीरों मंे रहकर इिन्दर्यों के द्वारा इन तुच्छ िवषयों को भोगता है।
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इस प्रकार समष्टि मनोभाव को प्राप्त हुआ हिरण्यर्भनामक ब्रह्म स्वयं ही (दूसरे द्वारा बोध पाये बिना ही) पूर्ववासना के अनुसार विराट्-भाव को, भुवन आदि भाव को और वहाँ पर स्वेदज, उद्भिज्ज, अण्डज और जरायुज रूप चार प्रकार के जीवभावों का नित्य संकल्प करता रहता है।
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