जैसे-मनः + अनुकूल = मनोनुकूल अधः + गति = अधोगति मनः + बल = मनोबल (ख) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता है।
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बड़े शर्म की बात शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे सबसे प्रमुख क्षेत्रो में जो देश का भविष्य बनाते हैं और जो विशिष्ट राष्ट्रीय स्तम्भ हैं, में ही इस तरह का अधः पतन लाया जा रहा है जबकि फिल्म, राजनीती, होटल, व्यवसाय, ऑटो इत्यादि में कोई आरक्षण नहीं दिया जाता यहाँ तक की भूख और कपड़ो के लिए भी कोई आरक्षण नहीं मिलता.
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बिन्दु वदन युगल पयोधर बिन्दिकायें अधः संस्थित पुनः उसके अधःस्थित जो सुभग त्रिभुज त्रिकोणमय है कामबीजमयी तुम्हारी कर्षिणी मन्मथ कला वह ध्यान में जिसके तुम्हारी कामकला है विराजित वह विक्षुब्ध कर देता सपदि विविध वनिता वृन्द को किन्तु इसकी कौन गणना, बात तो यह तुच्छ सी है सूर्य-चन्द्र उरोजमयि यह जो त्रिलोकी है विराजित कर दिया करता उसे विचलित तुम्हारा ध्यानधारी हे मदनमादिनि! मनोभव स्मरकला हे! ॥ १ ९ ॥
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गर्भगृह के द्वार पर अंतरंग, ललाट बिंब, द्वार शंख, अधः भाग, उदुम्बर शिला तथा चंद्र शिला, बाह्य भाग में निर्मित भद्र, कर्ण तथा सप्तरथ मंदिर में प्रतिरथिकाएँ, अंतराल की बाह्य एवं अभ्यंतर रथिकाएँ, महामण्डप की अभ्यंतर एवं बाह्य भाग की भद्र एवं कर्ण रथिकाएँ, तीन अंगों के शिखर में तथा कक्षासनों के ऊर्ध्व भाग पर निर्मित एवं शुकनासक, कर्ण-श्रृंगी की समस्त रथिकाएँ देव प्रतिमाओं द्वारा अलंकृत हैं।
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‘लिबरेशन ' ग्रुप का 1970 के गौरवपूर्ण संघर्षों के इतिहास के बाद 1980 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में अधः पतन शुरू हो गया...''।अन्य कुछ ग्रुपों को भी इसी तरह निपटाते हुए वह कहते हैं कि “वे राज्य के विरूद्ध सशस्त्र संघर्ष की शुरुआत को भविष्य में किसी शुभ मुहूर्त के लिए टालते रहे।” अब सी0पी0आई0 (माओवादी) ही एक ऐसी अकेली पार्टी है जो लम्बे जनयुद्ध को चलाएगी और जनवादी क्रांति एवं समाजवादी क्रांति दोनों ही चरणों के दौरान देश की तमाम ताकतों की अगुवाई एवं पथ प्रदर्शन करेगी।
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पृथिवी से (उर्ध्व प्रदेश से) पाताल को (अधः प्रदेश को) और पाताल से (अधःप्रदेश से) पृथिवी को (उर्ध्व प्रदेश को) जा रही रस्सी से लपेटे हुए घटीयंत्र (रस्सी से जल आदि भार को खींचने के लिए एक ओर जिसमें रस्सी बँधी रहती है, दूसरी ओर पत्थर आदि भरी वस्तु बँधी रहती है, जिसे अरहट कहते हैं, कुएँ से जल निकालने का यन्त्र) के समान मैं इस कुत्सित चित्तरूप रस्सी से वेष्टित होकर कभी ऊपर जाता हूँ कभी नीचे गिरता हूँ।।
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चौदह-भुवन-परमतत्त्वं (आत्मतत्त्वम्) रूपी शब्द-ब्रह्म रूप परमेश्वर के विराट-शरीर अथवा परमार्थिक-शरीर मुख्य रूप से सर्वप्रथम-एक विराट शरीर ; पुनः दो-व्यावहारिक या पार्थिव शरीर तथा विराट या परमार्थिक-शरीर ; पुनः तीन-पाताल या अधः लोक ; मृत्युलोक और भूवलोक और पुनः चौदह-तल, वितल, सूतल, महातल, तलातल, रसातल और पाताल रूप सात भुवन जो अधः लोक के अन्दर हैं ; भूः, भुवः, स्व, महः नामक चार भुवन मृत्युलोक में और जनः तपः और सत्य-लोक नामक तीन भुवन भुवर्लोक के अन्तर्गत आते हैं।
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चौदह-भुवन-परमतत्त्वं (आत्मतत्त्वम्) रूपी शब्द-ब्रह्म रूप परमेश्वर के विराट-शरीर अथवा परमार्थिक-शरीर मुख्य रूप से सर्वप्रथम-एक विराट शरीर ; पुनः दो-व्यावहारिक या पार्थिव शरीर तथा विराट या परमार्थिक-शरीर ; पुनः तीन-पाताल या अधः लोक ; मृत्युलोक और भूवलोक और पुनः चौदह-तल, वितल, सूतल, महातल, तलातल, रसातल और पाताल रूप सात भुवन जो अधः लोक के अन्दर हैं ; भूः, भुवः, स्व, महः नामक चार भुवन मृत्युलोक में और जनः तपः और सत्य-लोक नामक तीन भुवन भुवर्लोक के अन्तर्गत आते हैं।
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