एक क़सीदे में “ जोज़फ़ हाशिम ” कहते हैं कि जब अनेकेश्वरवाद व भ्रष्टाचार पूरे संसार में फैल गया तो ईश्वर ने अपने बंदों को मोक्ष दिलाने के लिए पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों को भेजा ताकि सत्य को जातियों के बीच प्रचलित करें।
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‘‘ … इस्लाम की स्थापना क्यों हुई? इसकी स्थापना अनेकेश्वरवाद और जन्मजात असमानताओं को मिटाने के लिए और ‘ एक ईश्वर, एक इन्सान ' के सिद्धांत को लागू करने के लिए हुई, जिसमें किसी अंधविश्वास या मूर्ति-पूजा की गुंजाइश नहीं है।
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जैसे अनेकेश्वरवाद व नास्तिकता का अधंकार, अज्ञानता व अत्याचार का अंधकार, अन्याय व भेदभाव का अधंकार, नैतिकता से दूरी का अधंकार, भाई बंधुओं को मारने का अंधकार और ग़लत सोच का अन्धकार, जो भौतिकता का परिणाम है और जिसमें आज का मनुष्य ग्रस्त हो चुका है।
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उन्हीं को देवता और ईश, या ईश्वर की सन्तान समझते हैं, उन्हीं की काल्पनिक मूर्तियाँ बनाकर भेंट और पुजापा चढ़ाते हैं, अतएव एकेश्वरवाद को शिर्क (अनेकेश्वरवाद) की इस दूसरी शाखा से बचाने के लिए इस्लाम ने एक स्थायी धारणा का वर्णन किया है।
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कूफ़े से शाम तथा शाम से मदीने की घटनाओं में हज़रत ज़ैनब की उपस्थिति अपने कुछ भाइयों या अन्य परिजनों के हाथ से चले जाने के कारण नहीं थी बल्कि हज़रत ज़ैनब के मतानुसार यह सच और झूठ, इस्लाम तथा अनेकेश्वरवाद और आस्था एवं मिथ्याचार के बीच टकराव का विषय था।
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जैसे अनेकेश्वरवाद व नास्तिकता का अधंकार, अज्ञानता व अत्याचार का अंधकार, अन्याय व भेदभाव का अधंकार, नैतिकता से दूरी का अधंकार, भाई बंधुओं को मारने का अंधकार और ग़लत सोच का अन्धकार, जो भौतिकता का परिणाम है और जिसमें आज का मनुष्य ग्रस्त हो चुका है।
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इसी तरह ‘ शिर्क ' (अनेकेश्वरवाद) और ‘ कुफ़्र ' (अधर्म) के साथ भी गर्व का पैदा होना लाज़िमी है, क्योंकि मुशरिक (बहुदेववादी) और व्यक्ति अपने मन में यह समझता है कि ईश्वरों और देवताओं से उसका कोई विशेष सम्बन्ध है जो दूसरों को प्राप्त नहीं।
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और शिया यह विश्वास रखते हैं कि उसके अतिरिक्त कोई पूज्य एंव उपास्य नही है, आदेश और तशरीअ (धर्म शास्त्र के क़ानून बनाना) केवल उसी के हाथ में है और हर प्रकार का शिर्क अर्थात अनेकेश्वरवाद चाहे वह गुप्त हो या प्रकट, एक महान अत्याचार और एक अक्षम्य पाप है।
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पश्चिमी सरकारें इस मत को मानदंड और धर्म को राजनीति से अलग कर राष्ट्रों के लूटने के लिए अपने साम्राज्यवादी लक्ष्यों को वैधता प्रदान करने के प्रयास में रहीं और हैं जबकि ईश्वरीय धर्मों का मूल उद्देश्य एकेश्वरवाद के आधार पर मनुष्य का कल्याण और अनेकेश्वरवाद, नास्तिकता व कुफ़्र से संघर्ष करना रहा है।
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अतः जगत इस्लाम का विचार आते ही थरथरा उठता है... । '' ‘‘... इस्लाम की स्थापना क्यों हुई? इसकी स्थापना अनेकेश्वरवाद और जन्मजात असमानताओं को मिटाने के लिए और ‘ एक ईश्वर, एक इन्सान ' के सिद्धांत को लागू करने के लिए हुई, जिसमें किसी अंधविश्वास या मूर्ति-पूजा की गुंजाइश नहीं है।
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