याची की पत्नी स्वेच्छा से उसका अभित्याग करके दूसरे पुरूष के साथ चली गयी और विवाहित होते हुए आशीष कुमार द्विवेदी के साथ बतौर पत्नी जारता के साथ अनैतिक जीवन व्यतीत कर रही है।
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याची ने अपने साक्ष्यों से इन तथ्यो को भी साबित किया है कि प्रत्यर्थी ने दिनॉक 26. 3.07 से याची का अभित्याग किया है जब कि वर्तमान याचिका दिनॉक 26.5.09 को प्रस्तुत की गई है।
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इस नजीर में यह कहा गया है कि अभित्यक्त पक्ष को वैवाहिक जीवन को पुनर्स्थापित करने हेतु, प्रयास करना चाहिए और यह भी साबित करना चाहिए कि बिना किसी युक्ति युक्त कारण के अभित्याग किया गया है।
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अगर पत्नी पति के दुर्व्यवहार के कारण अलग रहने के लिए मजबूर हुई है तो उसे अलग रहने के लिए युक्ति-युक्त कारण उपलब्ध होता है और ऐसी स्थिति में यह कदापि नहीं कहा जा सकता है कि पत्नी ने अभित्याग कर रखा है।
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अतः याची के प्रस्तुत साक्ष्यों से प्रत्यर्थी द्वारा उसकी उपेक्षा करते हुये वर्तमान याचिका प्रस्तुत करने के पूर्व दो वर्श से अधिक निरन्तर कालावधि तक बिना किसी युक्तियुक्त कारण के याची का अभित्याग किया जाना एक पक्षीय रूप से साबित पाया जाता है।
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यह देखा जाना चाहिए कि अभित्यक्त पक्ष ने साथ रहने के लिए कोई प्रयास किया है अथवा नहीं अगर क्रोध या भावावेष में साथ रहना अस्थायी रूप से और अभित्याग के आशय के बिना साथ रहना छोड़ दिया गया है तो इसे अभित्याग नहीं माना जाएगा।
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यह देखा जाना चाहिए कि अभित्यक्त पक्ष ने साथ रहने के लिए कोई प्रयास किया है अथवा नहीं अगर क्रोध या भावावेष में साथ रहना अस्थायी रूप से और अभित्याग के आशय के बिना साथ रहना छोड़ दिया गया है तो इसे अभित्याग नहीं माना जाएगा।
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याची ने अलग रहने का कारण प्रत्यर्थी संख्या-1 द्वारा याची के प्रति की गई क्रूरता एवं जारता बताया है जबकि प्रत्यर्थी संख्या-1 के अनुसार वह याची के माता पिता के गलत व्यवहार तथा याची द्वारा उसका अभित्याग करने के कारण याची से अलग रह रही है।
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दिनॉक 19. 1.09 को याची, उसके पिता, ग्राम प्रधान तथा पंचायत के सदस्यो को लेकर प्रत्यर्थी के मायके गये थे परन्तु प्रत्यर्थी ने याची के साथ आने से इन्कार कर दिया प्रत्यर्थी ने करीब साढे तीन वर्श से याची के साथ अपने दाम्पत्य जीवन का अभित्याग किया है।
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माननीय पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने अपनी नजीर लाभकौर बनाम नारायण सिंह ए. आई. आर 1978 पंजाब एवं हरियाणा 317 में यह कहा है कि अभित्याग का अर्थ विवाह के दूसरे पक्षकार का आशय स्थायी रूप से त्याग देना तथा उसके साथ निवास छोड़ देने से है।
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