चल इंद्र धनुष हो जायें हम सत रंगों में खो जायें हम बस रोम रोम में सांसों के कुछ प्रणय बीज बो आयें हम अरमान लुटायें चल चलके आंखों में बैठे जो दुबके।
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प्रिय का ख्याल जो रेत के कण कण को सोने सा दमकाता है अश्रुबिंदुओं में इंद्र धनुष रचता है सागर की लहरों में मन को बहाता है वह यहीं कहीं जो है ।
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जिस तरह इंद्र धनुष के रंग हमें विस्मित तो कर देते हैं, पर इससे अधिक उनकी सार्थकता नहीं बन पाती, एक आकर्षक नारी की पुरुष के सामने महत्ता भी वैसी ही रह जाती है।
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' लक्ष्मीप्रसाद गुप्त ने पढ़ा कि ‘ नववर्ष नव कूज सर्वत्र आनंद, नूतन वर्ष उमंगो का, इंद्र धनुष के रंगों का, स्वेद सृजन ने मांगा है साथ कलेंडर टांगा है, दाग न हो अब दंगों का, मेला लगे तिरंगो का।
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संवेदनाओं के साथ सबसे बड़े संघर्ष की कहानी आज भी यहीं जिंदा है, ये मुहल्ले हर शहर के आखिरी कोनों पर मिल जाएंगे बगैर किसी सजावट के. जमीन बदल रही है अपना रंग और धूप की आकाश में खिल रहा है इंद्र धनुष सा कुछ हर रोज, हर दिन और हर बरस.
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इंद्र धनुष के जितने रंग माँ के उतने शेड्स, जब माँ थी तो जीवन में जल की तरह घुली हुई थी...तब कोई जलन ना थी,वर्षों पीछे छूटे हुए समय को देखती हूँ तो इस समय से कुट्टी कर लेने को जी चाहता है-जहाँ तक पंख ले जाएँ बचपन से तब तक, जब तक माँ स...
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लक्ष्मी जी का परिवार प्रेम (समुद्र मंथन से १ ४ रत्न प्रकट हुए थे-शंख, एरावत, उच्च्श्रेवा, धवन्तरी, कामधेनु, कल्प वृक्ष, इंद्र धनुष, हलाहल, अमृत, मणि, रम्भा, वारुणी, चन्द्र और लक्ष्मी-तो लक्ष्मी जी के तेरह भाई बहन हुए, और समुद्र पिताजी-और क्योंकि विष्णु जी समुद्र में वास करते है, अतः घर जमाई हुए ना)
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उनकी प्रारम्भिक रचनाएं विशेषतः ” भग्नदूत ' (1933) और ' इत्यलम ' (1946) की कविताएं काफ़ी रोमांटिक हैं किन्तु अपनी परवर्ती रचनाओं जैसे ' हरी घास पर क्षण भर ' (1949), ' इंद्र धनुष रौंदे हुए ' (1957), ' अरी ओ करुणा प्रभामय ' (1959) तथा ' आँगन के पार द्वार ' (1961) आदि में उन्होंने रोमानीपन से अपने को बहुत कुछ अलग किया है ।
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सूर्योदय से सूर्यास्त तक इंद्र धनुष के सात रंग और राहू और केतु की कंपन-शक्ति घर के अलग-अलग हिस्सों पर निश्चित समय पर प्रभाव डालती है, अगर घर का कोई हिस्सा में नहीं है तो कटे हुई हिस्से में जो कंपनशक्ति प्रभाव डालती है उस कंपन शक्ति की उस घर के सदस्यांे में कमी पायी जाती है तथा इस कंपन शक्ति की कमी के कारण जो समस्याएं उत्पन्न होती हैं उस घर के सारे सदस्यों में उससे संबंधित बीमारी आती है।
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नाभि में वृक्ष एवं घास-फूस उगना तथा अपने शरीर में बहुत सी भुजाएं देखना, या अनेक शिर, या मस्तक देखना, फलों को दान करते देखना, उद्भिजों के दर्शन, सुंदर, शुभ अर्थात् श्वेत माला धारण करना, श्वेत वस्त्र पहनना, चंद्रमा, सूर्य और ताराओं को हाथ से पकड़ना, या उनके परिमार्जन का स्वप्न दिखायी देना, इंद्र धनुष को हृदय से लगाना, या उसे ऊपर उठाने का स्वप्न दिखायी देना और पृथ्वी, या समुद्र को निगल लेना एवं शत्रुओं का वध करना, ऐसे स्वप्न देखना सर्वथा शुभ होता है।
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