41. प्रत्यभिज्ञा दर्शन-इसे ' प्रत्यभिज्ञा दर्शन' इसलिये कहते हैं कि यह मानता अद्वैत ही है। 42. प्रत्यभिज्ञा दर्शन-इसे ' प्रत्यभिज्ञा दर्शन' इसलिये कहते हैं कि यह मानता अद्वैत ही है।43. प्रत्यभिज्ञा दर्शन-इसे ' प्रत्यभिज्ञा दर्शन' इसलिये कहते हैं कि यह मानता अद्वैत ही है। 44. त्रिक प्रत्यभिज्ञा -इसको त्रिक्दर्शन इसलिये कहते हैं कि इसी मुख्यतया प्रतिपादन किया गया है: 45. ' वही यह अग्नि शब्द है' ऐसी प्रत्यभिज्ञा शब्द के नित्यत्व के बिना नहीं हो सकती। 46. प्रत्यभिज्ञाशास्त्र में ईश्वर के रूप में अपनी प्रत्यभिज्ञा (पुनरनुभूति) ही वह मार्ग है। 47. प्रत्यभिज्ञा दर्शन में स्वीकृत ३६ मूल तत्वों के प्रतीक स्वरूप नाट्यशास्त्र में ३६ अध्याय हैं।48. त्रिक प्रत्यभिज्ञा -इसको त्रिक्दर्शन इसलिये कहते हैं कि इसी मुख्यतया प्रतिपादन किया गया है: 49. पहचान के लिए प्रत्यभिज्ञा के लिए मन की आवश्यकता होती उस ही पहचान सकता. 50. अभेदवादी शैव दर्शन को त्रिक दर्शन या प्रत्यभिज्ञा दर्शन के नामों से भी जाना जाता है।