41. परोक्ष ज्ञान के पांच भेद हैं-स्मृति, प्रत्यभिज्ञान , तर्क अनुमान और आगम। 42. कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रत्यभिज्ञान स्वरूप यह कोरी अनुमानाश्रित कल्पना भी सत्यमूल होती है। 43. यदि कोई प्रत्यभिज्ञान विसंवाद (भ्रमादि) पैदा करता है तो उसे प्रत्यभिज्ञानाभास जानना चाहिए। 44. क्योंकि यह वही शरीर है यह प्रत्यभिज्ञान तो स्वरूप एवं आकृति की समानता के कारण होता है। 45. क्योंकि यह वही शरीर है यह प्रत्यभिज्ञान तो स्वरूप एवं आकृति की समानता के कारण होता है। 46. पहला एकत्व प्रत्यभिज्ञान का उदाहरण है, दूसरा सादृश्य प्रत्यभिज्ञान और तीसरा वैसा दृश्य प्रत्यभिज्ञान का है। 47. पहला एकत्व प्रत्यभिज्ञान का उदाहरण है, दूसरा सादृश्य प्रत्यभिज्ञान और तीसरा वैसा दृश्य प्रत्यभिज्ञान का है। 48. पहला एकत्व प्रत्यभिज्ञान का उदाहरण है, दूसरा सादृश्य प्रत्यभिज्ञान और तीसरा वैसा दृश्य प्रत्यभिज्ञान का है। 49. स्मृति एवं प्रत्यभिज्ञान को समझाने के लिए इस दर्शन में केवल संस्कार अथवा वासना को पर्याप्त समझा गया। 50. सत्य से अनुप्राणित होने के कारण ही कल्पना स्मृति और प्रत्यभिज्ञान का सा सजीव रूप प्राप्त करती है।