41. तबला तरंग, मृदंग तरंग को कलाकार मन्द्र सप्तक सेतार सप्तक के षडज तक मिला लेते है तारता का क्षेत्र इतना विस्तृत है. 42. वीणा का अर्थ मत कोकिला है जिसमें मन्द्र , मध्य और तार स्थान के सात-~ सातस्वरों की अभिव्यक्ति के लिए इक्कीस तंत्रियां होती है. 43. कई राग सिर्फ़ मन्द्र , मध्य या तार सप्तक में ज़्यादा गाये बजाये जाते हैं, जैसे राग सोहनी तार सप्तक में ज़्यादा खुलता है। 44. ख़ास कर के अडाणा से इसे अलग रखने के लिए यह ज़रूरी है कि मन्द्र सप्तक और पुर्वांग पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाए। 45. ख़ास कर के अडाणा से इसे अलग रखने के लिए यह ज़रूरी है कि मन्द्र सप्तक और पुर्वांग पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाए। 46. कई राग सिर्फ़ मन्द्र , मध्य या तार सप्तक में ज़्यादा गाये बजाये जाते हैं, जैसे राग सोहनी तार सप्तक में ज़्यादा खुलता है। 47. जब पहली बार जाना था कि मन्द्र सप्तक के सुरों में नीचे बिंदी लगाते हैं और तार सप्तक के सुरों में ऊपर... 48. इसके मन्द्र धैवत को षडज मान कर यदि मालकौंस के स्वरों का प्रयोग किया जाए तो राग भूपाली का दर्शन होने लगता है। 49. मन्द्र निषाद को जब षडज मान कर मालकौंस के स्वरों का प्रयोग किया जाता है तब राग मेघ मल्हार का आभास होने लगता है।50. वायु नाभि से उठकर उर स्थान से टकराकर मुख से निकलता है, तब मन्द्र स्वर निकलता है (प्रात: सवन) ।