1. तुमने कहा यह ठीक नहीं, तो अप्रीति बनी। 2. हम सुख के साधनों में दुःख के समान अप्रीति रखते हैं। 3. अनिच्छित वस्तु के प्रति अप्रीति या अरुचि को द्वेष कहते हैं ।। 4. उत्तेजना वही रहेगी, सिर्फ प्रीति और अप्रीति की बदलने की जरूरत है। 5. पर यहाँ किसका और कैसा स्वार्थ फिर चहुँ ओर क्यों बेलगाम अप्रीति ? 6. प्रीति (ॠद्यद्यद्धठ्ठड़द्यत्दृद), अप्रीति (ङड्ढद्रद्वथ्द्मत्दृद) तथा विषाद (ग़्ड्ढद्वद्यद्धठ्ठथ्)-ये भिन्न-भिन्न विशेषता इन गुणों की है। 7. " परन्तु जिस धारा का बैंकर और मुझ पर अपराध लगाया गया है, उसमेंकेवल अप्रीति को बढ़ाना ही ज़ुर्म है. 8. इस तरह के किसी काम से घृणा या अप्रीति जाहिर करनेे के लिए समाज के पास सिर्फ यही साधन है। 9. किन्तु जिस सरकार ने किसी भी पहली प्रणाली की अपेक्षाहिन्दुस्तान को अधिक हानि पहुंचाई है, उसके प्रति अप्रीति रखना मैं सद्गुणमानता हूं. 10. दूरगामी परिणाम देखकर तदनुसार कर्म करना प्रारम्भ में कठिन लगता है, अतः उसे करने में हमारी अरुचि / अप्रीति रहती है।