1. से कृपिका तक बढ़ जाता है. 2. डिस्टल एसिनस एवं कृपिका नहीं बदलते. 3. कृपिका ऑक्सीजन को अवशोषित कर बाद में इसे खून में स्थानांतरित कर देती है.4. कृपिका ऑक्सीजन को अवशोषित कर बाद में इसे खून में स्थानांतरित कर देती है.5. इन विकृतियों के परिणामस्वरूप गैस आदान-प्रदान के लिए प्रयोग में आनेवाले कृपिका के सतह को घटा देती है. 6. [5] इन विकृतियों के परिणामस्वरूप गैस आदान-प्रदान के लिए प्रयोग में आनेवाले कृपिका के सतह को घटा देती है. 7. बहुत बुरा साँस छोड़ना अटैक क्योंकि कृपिका में हवा पूरी तरह से हटा नहीं, वायुकोशीय वातस्फीति में वृद्धि विकसित करता है. 8. वातस्फीति कृपिका को पोषित करने वाली संरचना के नष्ट होने के कारण होनेवाला फेफड़े के ऊतक का रोग है, कुछ मामलों में 9. सामान्य सांस लेने में हवा ब्रांकाई से होकर अंदर कृपिका में जाती है, जो केशिका से घिरी हुई छोटे आकार की थैलियां होती हैं. 10. सामान्य सांस लेने में हवा ब्रांकाई से होकर अंदर कृपिका में जाती है, जो केशिका से घिरी हुई छोटे आकार की थैलियां होती हैं.