1. देवकर्म प्रदक्षिण व पितृकर्म अप्रदक्षिण करें ।2. -इनसे अधिक समुद्र के किनारे किया गया देवकर्म पुण्यदायी है। 3. -मंदिर से अधिक पुण्यदायी तीर्थ भूमि में किए देवकर्म होते हैं 4. इसीलिए देवकर्म और पितृ कर्मों में इन स्थानों से जलधार देने का विधान है। 5. इसीलिए देवकर्म और पितृ कर्मों में इन स्थानों से जलधार देने का विधान है। 6. मनु जी के कथनानुसार मधुपर्व, ज्योतिष्टोमादि यज्ञ, पृतकर्म और देवकर्म में पशु हिंसा करना चाहिए । 7. -तीर्थ भूमि से भी अधिक शुभ किसी नदी के तट पर किए देवकर्म देते हैं। 8. -इन वृक्षों के तले किए देव कर्म से अधिक फल मंदिर में किए देवकर्म देते हैं। 9. मनु जी के कथनानुसार मधुपर्व, ज्योतिष्टोमादि यज्ञ, पृतकर्म और देवकर्म में पशु हिंसा करना चाहिए । 10. होम, दान, ब्राह्मण-भोजन, देवकर्म और पितृकर्म को यदि ये देख लें तो वह कर्म निष्फल हो जाता है।