1. लेकिन इस किताब का कोई मुकम्मल रूपबंध नहीं है। 2. और रूपबंध दोनों स्तर पर, ‘आषाढ़ का एक दिन' ऐसा पर्याप्त 3. रूपबंध कहाँ जा रहा है, शिल्प कहाँ जा रहा है,4. इसीलिए बहुधा इस रूपबंध के प्रैक्टिशनर डायरी और जर्नल में अंतर नहीं रख 5. तेंडुलकर ने मराठी रंगमंच को उसके परंपरागत और ठस रूपबंध से उबार कर बदलते वक़्त से जोड़ा। 6. जरूरत पड़ती है शायद इसीलिए बहुधा इस रूपबंध के प्रैक्टिशनर डायरी और जर्नल में अंतर नहीं रख पाते। 7. पहले अध्याय के रूपबंध में एक जादू है, एक तिलिस्म है, जिसमें आप खो जाते हैं। 8. इस किताब को पढ़कर मन में प्रश्न उठता है कि इसकी विधा या इसका रूपबंध क्या है? 9. मैं इस किताब के शिल्प या रूपबंध की बात नहीं करूँगा, क्योंकि इस पर काफी चर्चा हो चुकी है। 10. यह शायद आज के साहित्य की विशेषता है कि रचना के रूपबंध में अनेक विधाओं की बहुत तीव्र आवाजाही हो रही है।