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अग्निमांद्य sentence in Hindi

pronunciation: [ aganimaanedy ]
"अग्निमांद्य" meaning in English
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  • अधिक शोक, जागरण तथा अधारणीय वेगों को बलपूर्वक रोकने से भी अग्निमांद्य होकर धातुक्षय होता है।
  • चातुर्भद्र चूर्ण: बालकों के सामान्य रोग, ज्वर, अपचन, उल्टी, अग्निमांद्य आदि पर गुणकारी।
  • आयुर्वेद और यूनानी चिकित्साशास्त्रों में इसका उपयोग कफ, वात, श्वास, अग्निमांद्य उन्निद्र इत्यादि रोगों में बताया गया है।
  • पाचन क्रिया विकृत होने अग्निमांद्य होने पर गरिष्ठ खाद्य पदार्थो के सेवन से अम्लपित्त रोग अधिक होता है।
  • यह पेट दर्द, दस्त रोग, अग्निमांद्य आदि में जामुन के रस में सेंधानमक मिलाकर पीना चाहिए।
  • 4. घी से युक्त खिचड़ी के प्रथम निवाले के साथ हिंग्वष्टक चूर्ण खाने से अग्निमांद्य दूर होगा।
  • वंग भस्म: धातु विकार, प्रमेह, स्वप्न दोष, कास, श्वास, क्षय, अग्निमांद्य आदि पर बल वीर्य बढ़ाती है।
  • मैने इसको निम्नलिखित रोगों मे लाभदायक पाया है-अग्निमांद्य: वज्रकक्षार के साथ मे प्रयोग किया जाता है ;
  • लवांगादि चूर्ण: वात, पित्त व कफ नाशक, कंठ रोग, वमन, अग्निमांद्य, अरुचि में लाभदायक।
  • भोजन के पहले एवं बाद में पानी नहीं पीने से खाया हजम होकर भूख खुलेगी, जिससे अग्निमांद्य दूर होगा।
  • कपर्दक (कौड़ी, वराटिका, चराचर) भस्म: पेट का दर्द, शूूल रोग, परिणाम शूल अम्लपित्त, अग्निमांद्य व फेफड़ों के जख्मों में लाभकारी।
  • इससे अग्निमांद्य (भूख का न लगना, अपच) और अतिसार (दस्त) आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
  • 9. दिन भर में केवल एक बार ही भोजन करने से एवं एक समय फलाहार लेने से भी अग्निमांद्य नष्ट होता है।
  • 2. भोजन करने से पहले अदरक की कतरन में सेंधा नमक डालकर चबाने से भूख खुलती है एवं अग्निमांद्य नष्ट होता है।
  • संतरे के रस में थोड़ा सा काला नमक व सोंठ मिलाकर लेने से अजीर्ण, अफरा, अग्निमांद्य आदि पेट की गड़बड़ियों में राहत मिलती है।
  • उलटी, प्यास, जी मिचलाना, पित्त-विकार, जलन, पेटदर्द, अग्निमांद्य, पेचिश, मरोड़ आदि व्याधियों में यह लाभप्रद है।
  • नुस्खे अग्निमांद्य (कमजोर पाचन शक्ति) खाना खाते समय दाल-सब्जी या सलाद आदि के साथ जरा-सा सिरका मिला लेने से भोजन आसानी से पच जाता है।
  • अनिद्रा, शूल, अग्निमांद्य, कास (खाँसी), श्वास, हिचकी, शीघ्रपतन और नपुंसकता आदि व्याधियाँ दूर करने में उपयोगी होता है।
  • यह अग्निमांद्य, अर्श, रक्त विकार, उदर रोग, दाह, मूत्र कृच्छ, शोध, रक्तपित्त, कृशता आदि में फायदेमंद तथा अंधता निवारक है।
  • वमन, विरेजन, निरूहण आदि पंचकर्म के अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करने से धातुक्षय होकर अग्निमांद्य तथा अग्निमांद्य के कारण पुनः अनुमोल धातुक्षय होने से शरीर में कृशता उत्पन्न होती है।
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