अमरजीत कौंके sentence in Hindi
pronunciation: [ amerjit kaunek ]
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- वह, कविताएँ और मैं / अमरजीत कौंके-कविता कोश-हिन्दी कविताएँ, ग़ज़ल, नज़्म, शायरी, उर्दु शेर, काव्य, अनुवाद, कविता, लोकगीत, कवि,
- अचानक / अमरजीत कौंके एक तितली उड़ती उड़ती आई और आ कर एक पत्थर पर बैठ गई पत्थर अचानक खिल उठा और फूल बन गया.........
- 098142 31698 दुखों के बिना / अमरजीत कौंके दुःख था अंत की थी भूख लेकिन मै खुश हो जाया करता था कविताएँ लिख कर......
- 098142-31698 कविता संग निपट अकेला / अमरजीत कौंके सुख था जितना बाँट दिया सब दुःख था जितना मन पर झेला मैं कविता संग निपट अकेला....
- 098142 31698 समुन्द्र से कहना / अमरजीत कौंके समुन्द्र से कहना चंद्रमा से कहना बादलों से और हवा से कह देना कि आज कल मैं बहुत उदास रहता हूँ........
- 098142-31698 दुखों भरी संध्या / अमरजीत कौंके जितनी देर दोस्त थे कितनी सहज थी जिन्दगी ना तुम औरत थी ना मै मर्द एक दुसरे का दर्द समझने की कोशिश करते.....
- वृक्ष की भाँतिभीगने कीकला आ जायेडॉ अमरजीत कौंके की कविता उनकी पुस्तक अंतहीन दौड़ से साभारसाथ ही आबिदा जो हर समय भली लगतीं हैं इस दौर में क्या क्या है
- 098142 31698 प्रश्नों की माटी / अमरजीत कौंके कभी कभी पता नहीं यह कैसा मौसम आ जाता है कि रेल के गुज़र जाने के बाद प्लेटफार्म का सारा सन्नाटा मेरे भीतर समा जाता है.....
- अमरजीत कौंके ने कुछ कविताएँ पिछले बरस लिखी थीं जिन्हें उन्होंने अपनी त्रैमासिक पत्रिका “प्रतिमान” (जुलाई-सितम्बर 2008) में प्रकाशित किया था, उन्हीं में एक कविता “माँ के नाम का चिराग” भी यहाँ प्रस्तुत की जा रही है।
- उदासी है चाहे जानलेवा लेकिन दुनिया की सब खुशिओं पर भारी है............ पवन करण की पुस्तक “स्त्री मेरे भीतर” का पंजाबी अनुवाद “औरत मेरे अन्दर” अनुवादक-अमरजीत कौंके प्रकाशक-प्रतीक प्रकाशन, पटिआला मूल्य-६०/-, पन्ने-८० सम्पर्क-०९८१४२ ३१६९८
- मुझे उम्मीद है कि “सेतु साहित्य” के पाठक डा. अमरजीत कौंके की यहाँ प्रकाशित दस कविताओं को पढ़कर न केवल इनसे एक गहरा जुड़ाव महसूस करेंगे बल्कि अपने भीतर इन कविताओं पर टिप्पणी छोड़ने का दबाव भी अनुभव करेंगे।
- मुझे उम्मीद है कि ' ' सेतु साहित्य '' के पाठक डा. अमरजीत कौंके की यहाँ प्रकाशित दस कविताओं को पढ़कर न केवल इनसे एक गहरा जुड़ाव महसूस करेंगे बल्कि अपने भीतर इन कविताओं पर टिप्पणी छोड़ने का दबाव भी अनुभव करेंगे।
- मुठ्ठी भर रौशनी / अमरजीत कौंके सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ अभी शेष है अब भी मुठ्ठी भर रौशनी इस तमाम अँधेरे के खिलाफ खेतों में अभी भी लहलहाती हैं फसलें पृथ्वी की कोख तैयार है अब भी बीज को पौधा बनाने के लिए..
- 098142 31698 काश / अमरजीत कौंके मेरा प्यार तुम पर इस तरह बरसता है जैसे किसी पत्थर के ऊपर लगातार पानी का कोई झरना गिरता है............................... काश! तुम्हे कभी किसी बृक्ष की भांति बारिश में भीगने की कला आ जाये.........
- 098142 31698 युद्धरत्त / अमरजीत कौंके एक न एक दिन चीर दूंगा यह अँधेरे की चादर बस यही सोच कर मैं युद्धरत्त हूँ निरंतर इस अँधेरे के पार मुझे मेरी माँ का चेहरा नज़र आता है इस अँधेरे के पार मुझे मेरे पिता के झुक रहे काँधे दिखाई देते हैं.....
- कुछ शब्द / अमरजीत कौंके कुछ शब्द लिखे थे किसी और के लिए पढ़े किसी और ने समझा कोई और पढ़ कर भावुक कोई और हुआ प्रभावित कोई और गुस्से कोई और हुआ ख़ुशी हुई किसी और को कुछ शब्द जिस के लिए लिखे थे सिर्फ उसी ने नहीं पढ़े................
- अपनी माँ के निधन पर डा. अमरजीत कौंके ने कुछ कविताएँ पिछले बरस लिखी थीं जिन्हें उन्होंने अपनी त्रैमासिक पत्रिका '' प्रतिमान '' (जुलाई-सितम्बर 2008) में प्रकाशित किया था, उन्हीं में एक कविता '' माँ के नाम का चिराग '' भी यहाँ प्रस्तुत की जा रही है।
- रंजना जी, आपकी कहानी पड़ी...हैरान रह गया मैं....कहानी के अंत में आपने हैरान ही कर दिया...दूसरी बात सोचने वाली यह है कि जो बात हम सोच भी नहीं सकते ये लोग कितनी आसानी से कर देते हैं और इनके मन में इस बात का कोई मलाल नहीं....यह कहानी और भी कई सवाल उठाती है......जिन के जवाब इतने सहज नहीं...ये कहानी बेचैन करने वाली है........डॉ. अमरजीत कौंके
- नेम प्लेट / अमरजीत कौंके तमन्ना थी उसकी कि इक नेम प्लेट हो अपनी जिस पर लिखे हों हम दोनों के नाम मैंने कहा-नेम प्लेट के लिए एक दीवार चाहिए दीवार के लिए घर घर के लिए तुम और मैं तुम और मैं और बच्चे बच्चे.... बच्चे कह कर उसने नज़रें चुरा लीं और दूर आकाश में देखने लगी जैसे तलाश रही हो... घर बच्चे और नेम प्लेट...............
- राज़ / अमरजीत कौंके वह हंसती तो मोतिओं वाले घर का दरवाज़ा खुलता और खिलखिलाने लगती कायनात मैं हैरान हो कर पूछता उस से कि इस हंसी का राज़ किया है.....? उसके चेहरे पर पृथ्वी का संयम था उसके माथे पर आकाश की विशालता सूर्य का तेज़ था उसकी आँखों में अपने वालों को वो इन्द्र्ध्नुशय से यूँ बांधती कि कायनात खिल उठती समुंदर की तरह गहरी उसकी आँखों में कहीं कोई किश्ती नहीं थी ठहरती.....
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