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आँगन के पार द्वार sentence in Hindi

pronunciation: [ aanegan k paar devaar ]
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  • १९६४ में आँगन के पार द्वार पर उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ और १९७९ में कितनी नावों में कितनी बार पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रमुख कृतियां कविता
  • कभीं आँखें पसारकर, कभीं आँखें बंदकर फूट पड़ा वह अस्तित्व-सर्जन के आगे-' अरी ओ करुणा प्रभामय! ' ' आँगन के पार द्वार ' का संधान करा दे ।
  • मैं नहीं जानता कि लिखी कब? क्यों कि एक कविता ‘ आँगन के पार द्वार ' की है और दूसरी ‘ कितनी नावों में कितनी बार ' की पहली कविता है।
  • आप इन तीन कविताओं को सही नामों पर मूव करके मूल पन्नों को मिटा दीजिए: आँगन के पार द्वार / अज्ञेय, चाँदनी जी लो / अज्ञेय, मैं ने देखा, एक बूँद / अज्ञेय ।
  • १ ९ ६ ४ में ‘ आँगन के पार द्वार ' पर उन्हें साहित्य अकादेमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ और १ ९ ७ ९ में ‘ कितनी नावों में कितनी बार ' पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार।
  • लेकिन जहाँ तक द्वार का सवाल है, हिन्दी के कवि को तो ‘ आँगन के पार द्वार मिले द्वार के पार आँगन ' और उस प्रकार वह भवन की चिन्ता करने से ही मुक्त हो गया।
  • पुरस्कार: १ ९ ६ ४ में ‘ आँगन के पार द्वार ' पर उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ और १ ९ ७ ९ में ' कितनी नावों में कितनी बार ' पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार।
  • आप इन तीन कविताओं को सही नामों पर मूव करके मूल पन्नों को मिटा दीजिए: आँगन के पार द्वार / अज्ञेय, चाँदनी जी लो / अज्ञेय, मैं ने देखा, एक बूँद / अज्ञेय ।
  • दूसरी ओर यह भी है जैसे ‘ आँगन के पार द्वार ' की कविताएँ हैं, जिनमें है कि ‘ रूपों में एक अरूप सदा खिलता है ' या कि ‘ आत्मा की भाँवरें महाशून्य के साथ रची गयीं।
  • रचना कर्म: कवितासंग्रह: भग्नदूत,चिंता,इत्यलम,हरी घास पर क्षण भर,बावरा अहेरी,इन्द्रधनु रौंदे हुए, आँगन के पार द्वार,सुनहरे शैवाल, कितनी नावो में कितनी बार, पहले मै सन्नाटा बुनता हूँ, ऐसा कोई घर आपने देखा है।
  • ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि, लेखक और पत्रकार अज्ञेय के अपने इस संग्रह आँगन के पार द्वार तक आते-आते उनका काव्य निखार और गहराई के ऐसे उत्कर्ष तक पहुँचा है, जिसमें भारतीय चिन्तन-परम्परा की विश्व से संयोजन की क्षमता साकार हो उठी है।
  • ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि, लेखक और पत्रकार अज्ञेय के अपने इस संग्रह आँगन के पार द्वार तक आते-आते उनका काव्य निखार और गहराई के ऐसे उत्कर्ष तक पहुँचा है, जिसमें भारतीय चिन्तन-परम्परा की विश्व से संयोजन की क्षमता साकार हो उठी है।
  • अज्ञेय जी की प्रसिद्ध काव्य-कृतियाँ हैं-‘ इत्यलम ', ‘ हरीघास का पर क्षण भर ', ‘ इन्द्रधनुष रौंदे हुए ये ', ‘ अरी ओ करूण प्रभामय ', ‘ आँगन के पार द्वार ', ‘ सुनहले शैवाल ', ‘ कितनी नावों में कितनी बार ' एवं ‘ महावृक्ष के नीचे ' आदि कृतियाँ उल्लेखनीय हैं ।
  • इन्द्रधनु रौंदे हुए ये ' (१ ९ ५ ७), ' अरी ओ करुणा प्रभामय (१ ९ ५ ९), ' आँगन के पार द्वार ' (१ ९ ६ १), कितनी नावों में कितनी बार (१ ९ ६ ७) और क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (१ ९ ६ ९)-इसे ध्यान के व्यापक क्षेत्र में मैंने ग्रहण किया है ।
  • १९६४ में आँगन के पार द्वार पर उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ और १९७९ में कितनी नावों में कितनी बार पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रमुख कृतियां कविता संग्रह भग्नदूत, इत्यलम, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इंद्र धनु रौंदे हुए ये, अरी ओ करूणा प्रभामय, आंगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूँ, सागर-मुद्रा, महावृक्ष के नीचे, और ऐसा कोई घर आपने देखा है।
  • उनकी प्रारम्भिक रचनाएं विशेषतः ” भग्नदूत ' (1933) और ' इत्यलम ' (1946) की कविताएं काफ़ी रोमांटिक हैं किन्तु अपनी परवर्ती रचनाओं जैसे ' हरी घास पर क्षण भर ' (1949), ' इंद्र धनुष रौंदे हुए ' (1957), ' अरी ओ करुणा प्रभामय ' (1959) तथा ' आँगन के पार द्वार ' (1961) आदि में उन्होंने रोमानीपन से अपने को बहुत कुछ अलग किया है ।
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