हिंदी Mobile
Login Sign Up

एकीभाव sentence in Hindi

pronunciation: [ ekibhaav ]
"एकीभाव" meaning in English
SentencesMobile
  • “क्योंकि जिसका मन अच्छी प्रकार शान्त है (और) जो पाप से रहित है (और) जिसका रजोगुण शान्त हो गया है ऐसे इस सच्चिदानन्दधन ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए योगी को अति उत्तम आनन्द प्राप्त होता है”।
  • भावार्थ: क्योंकि जिसका मन भली प्रकार शांत है, जो पाप से रहित है और जिसका रजोगुण शांत हो गया है, ऐसे इस सच्चिदानन्दघन ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए योगी को उत्तम आनंद प्राप्त होता है॥27॥
  • ' ' बारह भिन्न प्रकार के यज्ञ यहाँ जो आत्मरूपयज्ञ की बात कही गयी है, उससे गीताकार का आशय है-“ परमात्मा में ज्ञान द्वारा एकीभाव से स्थित होकर ब्रह्मरूप अग्रि में यजन करना ” ।
  • अर्थात्-सर्वव्यापी अनन्त चेतना में एकीभाव से स्थित रूप योग से युक्त हुए आत्मा वाला तथा सबमें समभाव से देखने वाला योगी आत्मा को सम्पूर्ण भूतों में और सम्पूर्ण भूतों को आत्मा में देखता है ।
  • आगे ३ १ वें श्लोक में कहते हैं कि जो भी दिव्य कर्मी योगी एकीभाव से समस्त प्राणियों में भगवद्रूप की उपासना करते हैं, वे वर्त्तमान में रहते हुए भी उन्हीं परमेश्वर में निवास करते हैं।
  • भावार्थ: सर्वव्यापी अनंत चेतन में एकीभाव से स्थिति रूप योग से युक्त आत्मा वाला तथा सब में समभाव से देखने वाला योगी आत्मा को सम्पूर्ण भूतों में स्थित और सम्पूर्ण भूतों को आत्मा में कल्पित देखता है॥29॥
  • भावार्थ: जो पुरुष प्रिय को प्राप्त होकर हर्षित नहीं हो और अप्रिय को प्राप्त होकर उद्विग्न न हो, वह स्थिरबुद्धि, संशयरहित, ब्रह्मवेत्ता पुरुष सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा में एकीभाव से नित्य स्थित है॥ 20 ॥
  • भावार्थ: जो पुरुष एकीभाव में स्थित होकर सम्पूर्ण भूतों में आत्मरूप से स्थित मुझ सच्चिदानन्दघन वासुदेव को भजता है, वह योगी सब प्रकार से बरतता हुआ भी मुझमें ही बरतता है॥31॥ आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन ।
  • उनमें (चारों प्रकार के भक्तों में) मुझे में एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेमभक्ति वाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम है, क्यूंकि मुझको तत्व से जाननेवाले ज्ञानी को मैं अत्यंत प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यंत प्रिय है.
  • ) के द्वारा इस प्रकार चतुर्भुज रूपवाला मैं प्रत्यक्ष देखने के लिए, तत्व से जानने के लिए तथा प्रवेश करने के लिए अर्थात एकीभाव से प्राप्त होने के लिए भी शक्य हूँ॥ 54 ॥ मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ् गवर्जितः ।
  • थोड़ा विस्तार से भावार्थ समझें-‘‘ सर्वव्यापी अनन्तचेतन में एकीभाव से स्थितिरूप योग से युक्त आत्मा वाला तथा सबमें सम भाव से देखने वाला योगी आत्मा को संपूर्ण भूतों में स्थित और सभी भूतों को आत्मा में कल्पित देखता है।
  • भावार्थ: जिनका मन तद्रूप हो रहा है, जिनकी बुद्धि तद्रूप हो रही है और सच्चिदानन्दघन परमात्मा में ही जिनकी निरंतर एकीभाव से स्थिति है, ऐसे तत्परायण पुरुष ज्ञान द्वारा पापरहित होकर अपुनरावृत्ति को अर्थात परमगति को प्राप्त होते हैं॥17॥
  • ऐसा होता है “ आदित्य ” के समान ज्ञान द्वारा अपने अंदर बैठे परमात्मा को प्रकाशित करने के बाद हमारा मन ध्यान हेतु तद्रूप हो, बुद्धि तद्रूप हो तथा हम सच्चिदानंद घन परमात्मा में ही एकीभाव से स्थित हों।
  • भावार्थ: जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुखवाला है, आत्मा में ही रमण करने वाला है तथा जो आत्मा में ही ज्ञान वाला है, वह सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा के साथ एकीभाव को प्राप्त सांख्य योगी शांत ब्रह्म को प्राप्त होता है॥24॥
  • ' योगी इस सम्बन्ध में कहते हैं कि जिसने न्यूनाधिक रूप से परमात्मा के साथ एकीभाव प्राप्त कर लिया है अथवा जिसका लक्ष्य है परमात्मा के साथ एकात्मभाव को प्राप्त करना और जो इस प्रकार के एकात्मभाव में विश्वास करता है।
  • ‘ अर्थात् सबके कल्याण में लगे हुए, इन्द्रिय समूह को वश में करके, तथा सभी के प्रति समभाव रखते हुए, जो एकीभाव से ध्यानपूर्वक भजते हैं, वे योगी मुझे ही (सच्चिदानन्द परमात्मा को) प्राप्त करते हैं।
  • भावार्थ है-‘‘ जिसका मन भलीप्रकार शान्त है, जिसका रजोगुण दूर हो गया है, सभी प्रकार के पापों से जिसने पल्ला छुड़ा लिया है ऐसे इस सच्चिदानन्द घन ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए योगी को निश्चित ही परमानन्द की प्राप्ति होती है।
  • भावार्थ: जिनका मन तद्रूप हो रहा है, जिनकी बुद्धि तद्रूप हो रही है और सच्चिदानन्दघन परमात्मा में ही जिनकी निरंतर एकीभाव से स्थिति है, ऐसे तत्परायण पुरुष ज्ञान द्वारा पापरहित होकर अपुनरावृत्ति को अर्थात परमगति को प्राप्त होते हैं॥ 17 ॥
  • भावार्थ: जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुखवाला है, आत्मा में ही रमण करने वाला है तथा जो आत्मा में ही ज्ञान वाला है, वह सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा के साथ एकीभाव को प्राप्त सांख्य योगी शांत ब्रह्म को प्राप्त होता है॥ 24 ॥
  • परन्तु हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! यह अभ्यास अर्थात् एकीभाव में नित्य स्थिति के लिए बारंबार यत्न करने से और वैराग्य से वश में होता है |' (गीताः 6.35) जो लोग केवल वैराग्य का ही सहारा लेते है, वे मानसिक उन्माद के शिकार हो जाते हैं ।
  • More Sentences:   1  2  3

ekibhaav sentences in Hindi. What are the example sentences for एकीभाव? एकीभाव English meaning, translation, pronunciation, synonyms and example sentences are provided by Hindlish.com.