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ए. आई. sentence in Hindi

pronunciation: [ e. aaee. ]
"ए. आई." meaning in English
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  • परन्तु टाईटिल को पूर्ण रूपेण एक्सक्लूड नहीं किया जा सकता है, जैसा कि माननीय उच्च न्यायालय बॉम्बे के द्वारा ए. आई. आर. 1998 बॉम्बे 87 मूलजी उमेर्षी षाह आदि बनाम पैराडाईजिया बिल्डर्स प्रा. लि. मुम्बई आदि में अवधारित किया गया है कि
  • वादी द्वारा अपने समर्थन में विधि व्यवस्थायें-ए. आई. आर. 1958 इलाहाबाद 546 रिचपाल चं द बनाम रिचपाल सिं ह, ए. आई. आर1932 प्रि व काउन्सिल मो ह म्मद असलम खान बनाम फीरो ज शाह पेश की है जिनमे कहा गया है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-101 से मूलवाद सं0-1170/1996 104 के अर्न्तगत जब सम्पूर्ण साक्ष्य अभिलेख पर मौजूद हों ऐसे में सिद्धिभार महत्वहीन होता है।
  • एस. यू. संयुक्त राज्य अमेरिका में यू. एस. ए. आई. डी. कीसहायता प्राप्त सिंचाई प्रबंध एवं प्रशिक्षण परियोजना के अन्तर्गत भाग लेने वाले५ जल एवं भूमि प्रबंध राज्य प्रशिक्षण संस्थान/सिंचाई प्रबंध राज्य प्रशिक्षणसंस्थानों के १९ संकाय सदस्यों ने अपने सात महीनों का प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पूराकिया तथा राज्य सिंचाई/कृषि विभागों तथा केन्द्रीय जल आयोग के ९ अधिकारियों नेउन्नत सिंचाई प्रबंध के सामाजिक, तकनीकी एवं संगठनात्मक पहलुओं में सी.
  • याची की ओर से कथन के समर्थन में 2009 (1) ए. आई. सी 859 इलाहाबाद द्वारिका प्रसाद पाण्डेय बनाम हरिश्चन्द्र तथा अन्य का उद्धरण प्रस्तुत किया गया, जिसमें अशक्तता से हुंई क्षति की धनराशि के 1/3 भाग की कटौती की बात कही गयी है तथा विपक्षी द्वारा 2008 (1) ए. सी. सीडी 25 (एस. सी) सुनील कुमार बनाम राम सिंह गौड़ की नजीर प्रस्तुत की गयी है।
  • आरोपी क्र0-2 के अधिवक्ता की ओर से अंतिम तर्क के दौरान एवं अपने तर्क के समर्थन में न्याय दृष्टान्त-‘‘ सविता रामामूर्ति व अन्य विरूद्ध आर. बी. एस. चन्नावसवरघ्य ए. आई. आर.-2006 सुप्रीम कोर्ट-3086 ", ‘‘प्रेमचंद विजय कुमार विरूद्ध यशपाल सिंह एम. पी. व्हकली नोट-90 पेज-229" आदि प्रस्तुत किये गये हैं जिनके तथ्य एवं परिस्थितियॉं वर्तमान प्रकरण के समान ही हैं, अतः इनका लाभ आरोपी क्र0-2 को मिलता हैं।
  • आरोपी क्र0-2 के अधिवक्ता की ओर से अंतिम तर्क के दौरान अपने तर्क के समर्थन में न्याय दृष्टान्त-‘‘ सविता रामामूर्ति व अन्य विरूद्ध आर. बी. एस. चन्नावसवरघ्य ए. आई. आर.-2006 सुप्रीम कोर्ट-3086 ", एवं ‘‘ प्रेमचंद विजय कुमार विरूद्ध यशपाल सिंह एम. पी. व्हकली नोट-90 पेज-229" आदि प्रस्तुत किये गये हैं जिनके तथ्य एवं परिस्थितियॉं वर्तमान प्रकरण के समान ही हैं, अतः इनका लाभ आरोपी क्र0-2 को मिलता हैं।
  • इन तर्को के सम्बन्ध में विद्वान अधिवक्ता ने न्यायदृष्टान्त ' 2007 ए. आई. आर. एस. सी. डब्ल्यू, पेज 4458 सी. बी. आई हैदराबाद विरूद्ध एडविन' प्रस्तुत किया जिसमें यह विधि सिद्धा न्त प्रतिपादित किया गया कि जहां रेल्वे कर्मचारी की अभियोजन-स्वीकृति के आवेदन पर रेल्वे बोर्ड के समक्ष बिना सम्पूर्ण अभिलेख को पेश किये रेल्वे बोर्ड के सचिव द्वारा बिना निष्कर्ष का आधार दिये जारी की गई अभियोजन-स्वीकृति प्रापर आपराधिक प्रकरण संख्या 19/2007-39-राज्य विरूद्ध मुरलीधर गौड़ नहीं है।
  • न्यायालय 2005 सीआरआई. एल. जे. पेज 876 बी0के0 दानी बनाम राज्य में प्रतिपादित सिद्धांत एवं ए. आई. आर. 2008 सुप्रीम कोर्ट 809 निर्णीत दिनॉकित-12-12-2007 में दी गई विधि व्यवस्था के आधार पर इस मत का है कि अभियोजन पक्ष ने यह सिद्ध नहीं किया है कि जो सामग्री बरामद अपीलार्थी/अभियुक्त से की गई है, उस पर रिकार्डिग चलचित्र या आवाज का प्रतिलिप्यधिकार का प्रथम स्वामी कोई व्यक्ति कंपनी या संस्था है, जिसकी अनुमति के बिना अपीलार्थी/अभियुक्त द्वारा प्रतिलिप्यधिकार का अतिलंघन किया गया।
  • उपरोक्त वर्णित आधार पर एवं ए. आई. आर 1983 सुप्रीम कोर्ट पेज 360 ए. आई. आर1996 सुप्रीम कोर्ट पेज 66,1999 जे. सीआर. सी 182 (सुप्रीम कोर्ट), ए. आई. आर. 1990 सुप्रीम कोर्ट पेज 79, ए. आई. आर 1979 सुप्रीम कोर्ट 1949,2005 (1) जे. सीआर. सी 660,2008 (8) एस. आर. जे. 329 सुप्रीम कोर्ट में दी गई विधि व्यवस्थाएॅ जो इस केस के तथ्यों व परिस्थितियों से मेल खाते हैं, को आधार मानते हुए अभियुक्त उस पर लगाये गये आरोपों से दोषमुक्त होने योग्य है।
  • उपरोक्त वर्णित आधार पर एवं ए. आई. आर 1983 सुप्रीम कोर्ट पेज 360 ए. आई. आर1996 सुप्रीम कोर्ट पेज 66,1999 जे. सीआर. सी 182 (सुप्रीम कोर्ट), ए. आई. आर. 1990 सुप्रीम कोर्ट पेज 79, ए. आई. आर 1979 सुप्रीम कोर्ट 1949,2005 (1) जे. सीआर. सी 660,2008 (8) एस. आर. जे. 329 सुप्रीम कोर्ट में दी गई विधि व्यवस्थाएॅ जो इस केस के तथ्यों व परिस्थितियों से मेल खाते हैं, को आधार मानते हुए अभियुक्त उस पर लगाये गये आरोपों से दोषमुक्त होने योग्य है।
  • उपरोक्त वर्णित आधार पर एवं ए. आई. आर 1983 सुप्रीम कोर्ट पेज 360 ए. आई. आर1996 सुप्रीम कोर्ट पेज 66,1999 जे. सीआर. सी 182 (सुप्रीम कोर्ट), ए. आई. आर. 1990 सुप्रीम कोर्ट पेज 79, ए. आई. आर 1979 सुप्रीम कोर्ट 1949,2005 (1) जे. सीआर. सी 660,2008 (8) एस. आर. जे. 329 सुप्रीम कोर्ट में दी गई विधि व्यवस्थाएॅ जो इस केस के तथ्यों व परिस्थितियों से मेल खाते हैं, को आधार मानते हुए अभियुक्त उस पर लगाये गये आरोपों से दोषमुक्त होने योग्य है।
  • उपरोक्त वर्णित आधार पर एवं ए. आई. आर 1983 सुप्रीम कोर्ट पेज 360 ए. आई. आर. 1996 सुप्रीम कोर्ट पेज 66,1999 जे. सीआर. सी 182 (सुप्रीम कोर्ट), ए. आई. आर. 1990 सुप्रीम कोर्ट पेज 79, ए. आई. आर 1979 सुप्रीम कोर्ट 1949,2005 (1) जे. सीआर. सी 660,2008 (8) एसआर. जे. 329 सुप्रीम कोर्ट में दी गई विधि व्यवस्थाएॅ जो इस केस के तथ्यों व परिस्थितियों से मेल खाते हैं, को आधार मानते हुए अभियुक्त उस पर लगाये गये आरोपों से दोषमुक्त होने योग्य है।
  • उपरोक्त वर्णित आधार पर एवं ए. आई. आर 1983 सुप्रीम कोर्ट पेज 360 ए. आई. आर. 1996 सुप्रीम कोर्ट पेज 66,1999 जे. सीआर. सी 182 (सुप्रीम कोर्ट), ए. आई. आर. 1990 सुप्रीम कोर्ट पेज 79, ए. आई. आर 1979 सुप्रीम कोर्ट 1949,2005 (1) जे. सीआर. सी 660,2008 (8) एसआर. जे. 329 सुप्रीम कोर्ट में दी गई विधि व्यवस्थाएॅ जो इस केस के तथ्यों व परिस्थितियों से मेल खाते हैं, को आधार मानते हुए अभियुक्त उस पर लगाये गये आरोपों से दोषमुक्त होने योग्य है।
  • उपरोक्त वर्णित आधार पर एवं ए. आई. आर 1983 सुप्रीम कोर्ट पेज 360 ए. आई. आर. 1996 सुप्रीम कोर्ट पेज 66,1999 जे. सीआर. सी 182 (सुप्रीम कोर्ट), ए. आई. आर. 1990 सुप्रीम कोर्ट पेज 79, ए. आई. आर 1979 सुप्रीम कोर्ट 1949,2005 (1) जे. सीआर. सी 660,2008 (8) एसआर. जे. 329 सुप्रीम कोर्ट में दी गई विधि व्यवस्थाएॅ जो इस केस के तथ्यों व परिस्थितियों से मेल खाते हैं, को आधार मानते हुए अभियुक्त उस पर लगाये गये आरोपों से दोषमुक्त होने योग्य है।
  • परिवादी की ओर से अपने पक्ष के समर्थन में न्याय दृष्टान्त-‘‘ सी. सी. अलवी हाजी विरूद्ध पाला पेट्टी मो0 एवं अन्य एम. पी. एच. टी. 2008 (3)-115 (एस. सी.) ", ‘‘ डीविनोद शिबप्पा विरूद्ध नंदा वेलीअप्पा ए. आई. आर. 2006 (एस. सी.)-2179", ‘‘ एम. देवराज विरूद्ध जानसन डी. सी. आर2005 (1)-219 मद्रास हाईकोर्ट ", ‘‘ आसूहाजी विरूद्ध के. आई. अब्दुल लतीफ एवं अन्य डी. सी. आर2004 (2)-463 केरला हाईकोर्ट" एवं ‘‘ के. एनबीना विरूद्धमुनीयप्पन एवं अन्य ए. आई. आर.-2001 (एस. सी)-2895 "पेश किये गये हैं।
  • परिवादी की ओर से अपने पक्ष के समर्थन में न्याय दृष्टान्त-‘‘ सी. सी. अलवी हाजी विरूद्ध पाला पेट्टी मो0 एवं अन्य एम. पी. एच. टी. 2008 (3)-115 (एस. सी.) ", ‘‘ डीविनोद शिबप्पा विरूद्ध नंदा वेलीअप्पा ए. आई. आर. 2006 (एस. सी.)-2179", ‘‘ एम. देवराज विरूद्ध जानसन डी. सी. आर2005 (1)-219 मद्रास हाईकोर्ट ", ‘‘ आसूहाजी विरूद्ध के. आई. अब्दुल लतीफ एवं अन्य डी. सी. आर2004 (2)-463 केरला हाईकोर्ट" एवं ‘‘ के. एनबीना विरूद्धमुनीयप्पन एवं अन्य ए. आई. आर.-2001 (एस. सी)-2895 "पेश किये गये हैं।
  • विधि की यह स्थिति स्पष्ट हैं कि अधिनियम, 1988 की धारा 20 (1) के तहत अभियुक्त के विरूद्ध अवधारणा खण्डनीय है तथा खण्डन का भार उतना गम्भीर नहीं होता जितना की अभियोजन पक्ष पर अपराध सिद्ध करने के सम्बन्ध में है, लेकिन न्यायिक विनिश्चय धनवन्तरी बनाम महाराष्ट राज्य ए. आई. आर. 1984एससी. पेज 575 में माननीय उच्चतम न्यायालय ने तय किया कि अभियुक्त पर यह भार उतना हल्का भी नही है जितना की साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत अवधारणा के सम्बन्ध में है।
  • परिवादी की ओर से अपने पक्ष के समर्थन में न्याय दृष्टान्त-‘‘ सी. सी. अलवी हाजी विरूद्ध पाला पेट्टी मो0 एवं अन्य एम. पी. एच. टी. 2008 (3)-115 (एस. सी.) ", ‘‘ डीविनोद शिबप्पा विरूद्ध नंदा वेलीअप्पा ए. आई. आर. 2006 (एस. सी.)-2179", ‘‘ एम. देवराज विरूद्ध जानसन डी. सी. आर2005 (1)-219 मद्रास हाईकोर्ट ", ‘‘ आसूहाजी विरूद्ध के. आई. अब्दुल लतीफ एवं अन्य डी. सी. आर. 2004 (2)-463 केरला हाईकोर्ट" एवं ‘‘ के. एनबीना विरूद्धमुनीयप्पन एवं अन्य ए. आई. आर.-2001 (एस. सी)-2895 "पेश किये गये हैं।
  • परिवादी की ओर से अपने पक्ष के समर्थन में न्याय दृष्टान्त-‘‘ सी. सी. अलवी हाजी विरूद्ध पाला पेट्टी मो0 एवं अन्य एम. पी. एच. टी. 2008 (3)-115 (एस. सी.) ", ‘‘ डीविनोद शिबप्पा विरूद्ध नंदा वेलीअप्पा ए. आई. आर. 2006 (एस. सी.)-2179", ‘‘ एम. देवराज विरूद्ध जानसन डी. सी. आर2005 (1)-219 मद्रास हाईकोर्ट ", ‘‘ आसूहाजी विरूद्ध के. आई. अब्दुल लतीफ एवं अन्य डी. सी. आर. 2004 (2)-463 केरला हाईकोर्ट" एवं ‘‘ के. एनबीना विरूद्धमुनीयप्पन एवं अन्य ए. आई. आर.-2001 (एस. सी)-2895 "पेश किये गये हैं।
  • विधि की यह स्थिति स्पष्ट हैं कि अधिनियम, 1988 की धारा 20 (1) के तहत अभियुक्त के विरूद्ध अवधारणा खण्डनीय है तथा खण्डन का भार उतना गम्भीर नहीं होता जितना की अभियोजन पक्ष पर अपराध सिद्ध करने के सम्बन्ध में है, लेकिन न्यायिक विनिश्चय धनवन्तरी बनाम महाराष्ट राज्य ए. आई. आर. 1984 एस. सी. पेज 575 में माननीय उच्चतम न्यायालय ने तय किया कि अभियुक्त पर यह भार उतना हल्का भी नही है जितना की साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत अवधारणा के सम्बन्ध में है।
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e. aaee. sentences in Hindi. What are the example sentences for ए. आई.? ए. आई. English meaning, translation, pronunciation, synonyms and example sentences are provided by Hindlish.com.