गुलों में रंग sentence in Hindi
pronunciation: [ gaulon men renga ]
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- बसंत बहार में उसका गाया ' गुलों में रंग भरे...' मुझे मेंहदी हसन से भी बेहतर प्रस्तुति लगती है।
- गुलों में रंग भरे गुलों में रंग भरे आज नौबहार चले चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
- गुलों में रंग भरे गुलों में रंग भरे आज नौबहार चले चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
- मोहब्बत करने वाले कम न होंगे, चराग़े तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है, गुलों में रंग भरे आदि...
- इस कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने फैज अहमद फैज की गजल गुलों में रंग भरे बादेनो बहार चले, चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले..
- गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चलेचले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चलेकफ़्फ़स उदास है यरो, सबा से कुछ तो कहो कहीँ तो बहर-ए-खुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले
- फैज की कविता गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नो बहार चले को जब मेहदी हसन ने गाया तो इस गजल ने पूरे दक्षिण एशिया में धूम मचा दी।
- उनकी गायी हुई एक गज़ल आज भी स्मृतियों में कौंध रही है-गुलों में रंग भरे बादा-ए-नौ बहार चले, चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले।
- फैज की कविता गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नो बहार चले को जब मेहदी हसन ने गाया तो इस गजल ने पूरे दक्षिण एशिया में धूम मचा दी।
- गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले,चले भी आओ कि गुलशन का करोबार चलेआज हम जिस गज़ल को लेकर हाज़िर हुए हैं,उसे हमने एलबम “फ़ैज़ बाई आबिदा” से लिया है।
- गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले,चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले!मकाम फ़ैज़ कोई, राह में जचा ही नही,जो कुए यार से निकले तो सुए दार चले!
- फ़ैज़ की बाज़ी कुछ और है: ' गुलों में रंग भरे बादे-नौबहार चले / चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले. ' ऐसी मिसालें बेशुमार हैं.
- गुलों में रंग भरे… जितनी बेसब्री से १४ नवम्बर का इंतज़ार था, उतनी ही बेकरारी इस बात की थी के कब कुछ लम्हे ज़िन्दगी की भाग दौड़ से चुरा कर उस शाम को फिर से
- जहां तक गुलों में रंग भरे और शोला था जल बुझा हूं सरीखी फैज और फराज की कई गजलों की मकबूलियत की बात है, तो इसमें मेहदी हसन की आवाज की भी बहुत बड़ी भूमिका है।
- ' कुछ उसके दिल में लगावट जरूर थी ' का अहसास कुछ इस शिद्दत से होता है मानो कोई अजीज चुपके से ' हाथ दबाकर ' गुजर गया हो और ' गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार ' चली ही आती है।
- कई बार मैं और वह एक-दूसरे का हाथ थामे, सिविल लाइन्ज़ के पत्थर गिरजे के गिर्द टहलते और ज्ञान ‘ वंशी न बजाओ माझी मेरा मन डोलता ' या फिर ‘ गुलों में रंग भरे बादे-नौबहार चले ' गा कर सुनाता।
- गुलों में रंग भरे बादे-नौबहार1 चलेचले भी आओ कि गुलशन2 का कारोबार चलेक़फ़स3 उदास है यारो सबा4 से कुछ तो कहोकहीं तो बहरे-ख़ुदा5 आज ज़िक्रे-यार चलेकभी तो सुबह तेरे कुंजे-लब6 से हो आग़ाज7कभी तो शब सरे-काकुल से मुश्कबार8 चलेबड़ा है दर्द का रिश्ता ये
- जो किसी ने कहा, ‘ फैज साहब, ‘ गुलों में रंग भरे ' भी सुनाइए ', तो फैज साहब ने हंस कर कहा, ‘ कौन सी सुनाऊं, नूरजहां वाली सुनाऊं कि मेहंदी हसन वाली सुनाऊं ' और सब हंस पड़े।
- ये अकारण नहीं कि जिस ग़ज़ल से सबसे पहले मेहंदी साहेब को मकबूलियत हासिल हुयी वह ' गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले ' थी. फ़राज़ की अलग तेवर की रूमानी गज़लों की ख्याति के पीछे मेहंदी साहेब की अदायगी की भी करामात ज़रूर थी.
- तो कुछ लोगों का यह भी कहना है कि “ अगर नूरजहाँ ने ' मुझसे पहली-सी मोहब्बत ', मेहदी हसन ने ' गुलों में रंग भरे ' और इन फ़नकारा ने ' लाज़िम है कि हम भी देखेंगे ' न गाया होता ” तो ' फ़ैज़ ' को उतना फ़ैज़ नसीब न होता ” ।
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