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बालकृष्ण राव sentence in Hindi

pronunciation: [ baalekrisen raav ]
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  • ‘ प्रक्रिया ' (सम्पादक: श्री राजेन्द्रप्रसाद सिंह, मुज़फ़्फ़रपुर-बिहार, सन् 1972), ‘ उपलब्धि ' (संपादक: बालकृष्ण राव / डा. गोविन्द
  • हंस का साहित्य संकलन जो बालकृष्ण राव और अमृतराय के संपादन में संभवत 1957 में निकला था की प्रति भी 1994 में मुझे वहीं से मिली थी ।
  • समीक्ष्य पुस्तक “ राजस्थान में भ्रमण ' ' बालकृष्ण राव की पर्यटन पर पहली ही पुस्तक है, इससे पहले उनकी ‘‘ भारतीय संस्कृति के संदर्भ कोष ” प्रकाशित हुई थी ।
  • हिंदुस्तानी एकेडमी की 1927 में स्थापना हुई थी और तेज बहादुर सप्रू से लेकर बालकृष्ण राव, रामकुमार वर्मा, जगदीश गुप्त और रामकमल राय जैसे लोग इसके अध्यक्ष रह चुके हैं।
  • किसी जमाने में बालकृष्ण राव के सम्पादन में ‘माध्यम ' का प्रकाशन हुआ करता था, समकालीन साहित्य पर केन्द्रित इस पत्रिका का पुर्नप्रकाशन सत्य प्रकाशन मिश्र के सम्पादन में प्रारम्भ हो गया है।
  • बहुत दिनों बाद सन १९५९ ई० में उसका वृहत् संकलन रूप सामने आया जिसमें बालकृष्ण राव और अमृत राय के संपादकत्व में आधुनिक साहित्य और उससे सम्बंधित नवीन मूल्यों पर विचार किया गया।
  • बालकृष्ण राव की ये कविता शिशु के मुख से चंद पंक्तियों में इस सहजता और भोलेपन से प्रकृति की इस अनसुलझी पहेली की ओर इशारा कर जाती है कि मन सोच में पड़ जाता है।
  • बालकृष्ण राव की ये कविता शिशु के मुख से चंद पंक्तियों में इस सहजता और भोलेपन से प्रकृति की इस अनसुलझी पहेली की ओर इशारा कर जाती है कि मन सोच में पड़ जाता है।
  • तब मैंने उपकुलपति से कहा कि देखिए मैं कोशिश करूँगा कि एक महीना वहाँ रहूँ और ठीक एक महीने के बाद यहाँ आ जाऊँ और इस बीच मैं बालकृष्ण राव जी को भी मना लूँगा.
  • बालकृष्ण राव, राम-विलास शर्मा, शिवदान सिंह चौहान, नामवर सिंह, श्रीपत राय, भैरव प्रसाद गुप्त सहित साही, शैलेश मटियानी और ज्ञानरंजन आदि संपादकों से न सिर्फ मेरे बहुत आत्मीय संबंध रहे हैं, मैंने अपने साहित्यिक संस्कार भी यहीं से पाए और अर्जित किए हैं।
  • एकाध शब्द पढ़ा नहीं जाता-यथोक्तं तत्रभवता श्रीकृष्णेन “ सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्. ''... अतः यथानिश्चितं सम्यग् विचारणानंतरं यथाऽदिष्टम् अन्तःकरणेन तथैव कर्तव्यम्. आगे लिखा है: ‘‘ शुभं भवतु. ” हस्ताक्षर बालकृष्ण राव: (26.10.74.)
  • इस सुरुचि को वे अपने जीवन में संभवतः उस हद तक नहीं ला सके थे जैसा बालकृष्ण राव या अज्ञेय के जीवन में उन्होंने देकी थी-अतः एक कविता में वे कहते भी हैं-जो नहीं है, जैसे कि सुरुचि, वह नहीं है, उसका ग़म क्या।
  • अन्य कवियों में गुरुभक्त सिंह ' भक्त ', श्यामनारायण पांडेय, विद्यावती ' कोकिल ', सुमित्राकुमारी सिन्हा, आरसी प्रसाद सिंह, गोपालशरण सिंह ' नेपाली ', अनूप शर्मा, हरिकृष्ण प्रेमी, पद्मसिंह शर्मा ' कमलेश ', बालकृष्ण राव, हंसकुमार तिवारी, रमानाथ अवस्थी आदि हैं।
  • पहले कविता संग्रह ' अक्षरों का विद्रोह ' के प्राक्कथन में बालकृष्ण राव के शब्दों में, ' रामदेव आचार्य को भीड़ से डर नहीं लगता, अपनी विशिष्टता को गंवा देने की आशंका से वे व्याकुल नहीं हैं, भीड़ में खो जाने के भय से रात भर जागते नहीं रहते।
  • जबकि बालकृष्ण राव, शमशेर बहादुर सिंह, गिरिजाकुमार माथुर, कुँवरनारायण सिंह, धर्मवीर भारती, प्रभाकर माचवे, विजयदेवनारायण साही, रघुवीर सहाय आदि कवि की संवेदनाएँ और अनुभूतियाँ शहरी परिवेश की हैं तो दूसरी ओर भवानीप्रसाद मिश्र, केदारनाथ सिंह, शंभुनाथ सिंह, ठाकुरप्रसाद सिंह, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल आदि ऐसे कवि हैं जो मूलतः गाँव की अनुभूतियाँ और संवेदना से जुड़े हैं।
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