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बृहदारण्यक उपनिषद sentence in Hindi

pronunciation: [ berihedaarenyek upenised ]
"बृहदारण्यक उपनिषद" meaning in Hindi
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  • इसी संदर्भ में बृहदारण्यक उपनिषद का ऋषि मनुष्य को कर्म और चित्त के संस्कारों के प्रति सावधान करता हुआ कहता है।
  • मुझे कहीं लगता है कि सुन्दर और युगप्रवर्तक गार्गी को प्रेमी या मित्रविहीन बना कर बृहदारण्यक उपनिषद में ज्यादती हुई है।
  • बृहदारण्यक उपनिषद में एक कथा है जिसमें अन्त्य शब्द का अर्थ गाँव की सीमा पर बसे हुए लोगों से लिया गया है।
  • बृहदारण्यक उपनिषद में एक कथा है जिसमें अन्त्य शब्द का अर्थ गाँव की सीमा पर बसे हुए लोगों से लिया गया है।
  • इन बृहदारण्यक उपनिषद तथा छान्दोग्य उपनिषद के द्वारा इस जीवात्मा को निराकार ब्रह्म से अभिन्न स्थापित करने का प्रयत् न shankarachary ने किया है ।
  • वेद के पुरूष सूक्त में, प्रश्नोपनिषद में बृहदारण्यक उपनिषद में व छान्दोग्य उपनिषद में भी मनुष्य की विभिन्न 16 कलाओं का ही वर्णन है।
  • बृहदारण्यक उपनिषद के चौथे अध्याय के चौथे ब्राह्मण की 22 वें और पाँचवें ब्राह्मण के छठे मंत्रों के कुछ अंशों को ही हम यहाँ रखना चाहते हैं।
  • बृहदारण्यक उपनिषद के पाँचवें अध् याय के दसवें ब्राह्मण में थोड़ी-सी और छठे अध् याय के दूसरे ब्राह्मण के कुल सोलह मंत्रों में यही बात आई है।
  • बृहदारण्यक उपनिषद में याज्ञवल्क अपनी विदूषी पत्नि मैत्रेयी को बड़े प्रेम से समझाते है, “ न वा अरे मैत्रेयी पतिकामांस पति प्रियो भवति आत्मकामांस्तु एव ”
  • इस संहिता का जो ब्राह्मण भाग ' शतपथ ब्राह्मण ' के नाम से प्रसिद्ध है और जो ' बृहदारण्यक उपनिषद ' है, वह भी महर्षि याज्ञवल्क्य द्वारा ही हमें प्राप्त है।
  • 2. बृहदारण्यक उपनिषद, 6-4-7 के अनुसार स्त्री यदि मैथुन न करने दे तो उसे उस की इच्छा के अनुसार वस्त्र आदि दे कर उसके प्रति प्रेम प्रकट करे ।
  • बीसवीं सदी के पुरोधा अंग्रेजी कवि टी. एस. एलियट की विश्वख्यात कविता ' वेस्टलैंड ' का समापन भी तो बृहदारण्यक उपनिषद में आये ब्रह्मा के इसी मुखर मौन से उपजे संगीतमय जीवन-संदेश में हुआ है।
  • बृहदारण्यक उपनिषद का कहना है कि पहले आत्मा आदि पदार्थों का शास्त्र द्वारा श्रवण उपासना, पुन: हेतु द्वारा मनन अर्थात विवेचन रूप उपासना और पश्चात निदिध्यासन-एक चित्त होकर ध्यान रूप उपासना करनी चाहिए।
  • स्मरण रखो सृष्टि का संचालन कर्म से और कर्म का संचालन भाव से हो रहा है इसी परिप्रेक्ष्य में बृहदारण्यक उपनिषद का ऋषि कहता है-आत्मा सर्वमय है अर्थात जिसके साथ जुड़ जाता है वैसा ही हो जाता है।
  • और ये विशः क्या थे? विशः के संबंध में बृहदारण्यक उपनिषद में उल्लिखित है कि-‘ न तो ब्रह्म द्वारा समस्त कार्यों की सिद्धि संभव है, न अकेला क्षत्र इस दायित्व को उठा सकता है.
  • बृहदारण्यक उपनिषद १. ५. १ ५ में संवत्सर प्रजापति को १ ६ कलाओं वाला कहा गया है जिनमें १ ५ कलाएं (१ ५ वी कला?) तो उसका वित्त हैं जबकि १ ६ वी कला आत्मा है ।
  • याज्ञवल्क्य जो एक प्रमुख वेदांती दार्शनिक थे, बृहदारण्यक उपनिषद (बृहदारण्यक उपनिषद (४) ४२) में इस दर्शन के मूल स्वर को एक मरणासन्न व्यक्ति के स्पृहणीय वर्णन द्वारा प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि उनका मत था कि वह मरता हुआ व्यक्ति शरीर के बंधन से उत्तरोतर छुटकारा प्राप्त करता जा रहा है।
  • याज्ञवल्क्य जो एक प्रमुख वेदांती दार्शनिक थे, बृहदारण्यक उपनिषद (बृहदारण्यक उपनिषद (४) ४२) में इस दर्शन के मूल स्वर को एक मरणासन्न व्यक्ति के स्पृहणीय वर्णन द्वारा प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि उनका मत था कि वह मरता हुआ व्यक्ति शरीर के बंधन से उत्तरोतर छुटकारा प्राप्त करता जा रहा है।
  • याज्ञवल्क्य जो एक प्रमुख वेदांती दार्शनिक थे, बृहदारण्यक उपनिषद (बृहदारण्यक उपनिषद (४) ४ २) में इस दर्शन के मूल स्वर को एक मरणासन्न व्यक्ति के स्पृहणीय वर्णन द्वारा प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि उनका मत था कि वह मरता हुआ व्यक्ति शरीर के बंधन से उत्तरोतर छुटकारा प्राप्त करता जा रहा है।
  • याज्ञवल्क्य जो एक प्रमुख वेदांती दार्शनिक थे, बृहदारण्यक उपनिषद (बृहदारण्यक उपनिषद (४) ४ २) में इस दर्शन के मूल स्वर को एक मरणासन्न व्यक्ति के स्पृहणीय वर्णन द्वारा प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि उनका मत था कि वह मरता हुआ व्यक्ति शरीर के बंधन से उत्तरोतर छुटकारा प्राप्त करता जा रहा है।
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