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बौधायन धर्मसूत्र sentence in Hindi

pronunciation: [ baudhaayen dhermesuter ]
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  • कर्मकाण्ड की दृष्टि से ब्राह्मण एवं आरण्यक परस्पर अत्यधिक सम्बद्ध हैं, इसलिए बौधायन धर्मसूत्र में, आरण्यकों को भी ' ब्राह्मण ' आख्या से संयुक्त किया गया है-
  • बौधायन धर्मसूत्र में श्रुति तथा स्मृति के अतिरिक्त शिष्टाचरण को भी धर्म का लक्षण कहकर मनुस्मृति में प्रतिपादित श्रुति, स्मृति तथा शिष्टाचरण को ही सूत्र रूप में निबद्ध किया है।
  • गौतम तथा बौधायन आदि धर्मसूत्रों से हमें पर्याप्त मात्रा में भौगोलिक संकेत भी प्राप्त होते हैं, यथा बौधायन धर्मसूत्र [18] में शिष्टों के देश की सीमा बतलायी गयी है।
  • Balloon title = “ बौधायन धर्मसूत्र 2. 2-17 ” style = color: blue > * / balloon > इन प्रमाणों के आधार पर गौतम धर्मसूत्र इन रचनाओं के पश्चात् ठहराता है।
  • प्रमाण रूप में कहा जा सकता है कि [[बौधायन धर्मसूत्र]] में गौतम के नाम से यह मत उद्धृत किया गया है कि [[ब्राह्मण]] को क्षत्रिय की वृत्ति स्वीकार नहीं करनी चाहिए।
  • [[बौधायन धर्मसूत्र | बौधायन]] ने अपने को छोड़कर सात धर्मशास्त्रकारों के नाम लिये हैं-औपजंघनि, कात्य, काश्यप, [[गौतम धर्मसूत्र | गौतम]], प्रजापति, मौद्गल्य एवं [[हारीत धर्मसूत्र | हारीत]] ।
  • उनके अनुसार धर्मसूत्र पूर्ववर्ती हैं तथा धर्मशास्त्र परवर्ती-' इसी प्रकार कुछ बहुत पुराने सूत्रों यथा बौधायन धर्मसूत्र में भी एक श्लोक उद्धृत हैं ', इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि श्लोकबद्ध धर्मग्रन्थ धर्मसूत्रों से भी पूर्व विद्यमान थे।
  • जैसे, आपस्तंब धमर्सूत्र (2.11.15), विष्णु धर्मसूत्र (24.9-10), वशिष्ठ धर्मसूत्र (8.1), बौधायन धर्मसूत्र (2.1.38) और गौतम धर्मसूत्र (4.2, 23.12) में इसका स्पष्ट निर्देश है।
  • जैसे, आपस्तंब धर्मसूत्र [2.11.15], विष्णु धर्मसूत्र [24.9-10], वशिष्ठ धर्मसूत्र [8.1], बौधायन धर्मसूत्र [2.1.38] तथा गौतम धर्मसूत्र [4.2, 23.12] में इसका स्पष्ट निर्देश है।
  • इन संदर्भों के नाम देखें: याज्ञवल् क् य स् मृति, नारद स् मृति, आपस् तंब धर्मसूत्र, विष् णु धर्मसूत्र, वशिष् ठ धर्मसूत्र, बौधायन धर्मसूत्र, गौतम धर्मसूत्र, मनुस् मृति, विष् णु स् मृति और पराशर स् मृति।
  • बौधायन धर्मसूत्र [217] का कथन है कि सात प्रकार के व्यक्ति एक-दूसरे से अति सम्बन्धित हैं, और वे अविभक्तदाय सपिण्ड कहे जाते हैं-प्रपितामह, पिता, स्वयं व्यक्ति (जो अपने से पूर्व से तीन को पिण्ड देता है), उसके सहोदर भाई, उसका पुत्र (उसी की जाति वाली पत्नी से उत्पन्न) पौत्र एवं प्रपौत्र।
  • Balloon title = “ बौधायन धर्मसूत्र 2. 2.4.17 ” style = color: blue > * / balloon > किन्तु वर्तमान गौतम धर्मसूत्र में यह मत उपलब्ध नहीं होता, अपितु इसके स्थान पर यह कहा गया है कि आपत्काल में ब्राह्मण क्षत्रिय तथा वैश्य की वृत्ति को भी अपना सकता है।
  • बौधायन धर्मसूत्र (२ १ ५) में जब गणपति का वर्तमान स्वरूप निश्चित हो गया और देवी भागवत पुराण (११ / १ ७) ने पंचायतन देव वर्ग में शिव-शक्ति, विष्णु और सूर्य के स्थान गणेश को सम्मिलित कर लिया तो कला और शिल्प जगत में उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी।
  • इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनी की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पष्चिम में गांधार प्रदेश से लेकर पूर्व में असम तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था ।
  • इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनी की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पष्चिम में गांधार प्रदेश से लेकर पूर्व में असम तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था ।
  • इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनी की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पष्चिम में गांधार प्रदेश से लेकर पूर्व में असम तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था ।
  • इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनी की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पष्चिम में गांधार प्रदेश से लेकर पूर्व में असम तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था ।
  • बौधायन धर्मसूत्र [268] का कथन है कि सात प्रकार के व्यक्ति एक-दूसरे से अति सम्बन्धित हैं, और वे अविभक्तदाय सपिण्ड कहे जाते हैं-प्रपितामह, पिता, स्वयं व्यक्ति (जो अपने से पूर्व से तीन को पिण्ड देता है), उसके सहोदर भाई, उसका पुत्र (उसी की जाति वाली पत्नी से उत्पन्न) पौत्र एवं प्रपौत्र।
  • Balloon title = “ बौधायन धर्मसूत्र 1. 1.7 तथा 2.2.17 ” style = color: blue > * / balloon > सामवेद के श्रौतसूत्र लाट्यायन balloon title = “ श्रौतसूत्र लाट्यायन, 1.3.3 तथा 1.4.17 ” style = color: blue > * / balloon > एवं द्राह्यायण balloon title = “ द्राह्यायण, 1.4.17 तथा 9.3.15 ” style = color: blue > * / balloon > भी गौतम को उद्धृत करते हैं।
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