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मौलाए sentence in Hindi

pronunciation: [ maulaa ]
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  • लेहाज़ा उस दिन रहमते ख़ुदा के इस्तेहक़ाक़ के लिये इन तमाम चीज़ों को इख़्तेयार करना होगा जिनकी तरफ़ मौलाए कायनात ने इषारा किया है और इनके बग़ैर रहमतुल लिल आलमीन का कलमा और इनकी मोहब्बत का दावा भी काम नहीं आ सकता है।
  • (बिहारुल अनवार जि 1, स 224, अध्याय 7) मौलाए काएनात हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः العبودیۃ خمسۃ اشیاء خلا البطن وقرائۃ القرآن و قیام اللیل والتضرع عند الصبح والبکاء من خشیۃ اللہ बंदगी पाँच चीज़ों का नाम हैः 1.
  • सय्यद रज़ी-इस दुआ का इब्तेदाई हिस्सा सरकारे दो आलम (स 0) नक़ल किया गया है और आखि़री हिस्सा मौलाए कायनात की तज़मीन का है जो सरकार (अ 0) के कलेमात की बेहतरीन तौज़ीअ और तकमील है “ ला यहमाहमा ग़ैरक ”
  • कितना बलीग़ फ़िक़रा है मौलाए कायनात (अ 0) का के गुज़िष्ता लोग हर क़ैद व बन्द और हर पाबन्दीए हयात से आज़ाद हो गए लेकिन मौत के चंगुल से आज़ाद न हो सके और उसने बाला आखि़र उन्हें गिरफ़्तार कर लिया और उनकी वादागाह तक पहुंचा दिया।
  • (((अफ़सोस की बात है के बाज़ अलातों में बाज़ मोमिन अक़वाम की पहचान ही ढोल ताशा और सारंगी बन गई है जबके मौलाए कायनात (अ) ने इस कारोबार को इस क़द्र मज़मूम क़रार दिया है के इस अमल के अन्जाम देने वालों की दुआ भी क़ुबूल नहीं होती है।
  • लेहाज़ा इसकी बैयत में सबक़त करना एक इन्सानी और ईमानी फ़रीज़ा है और दरहक़ीक़त मौलाए कायनात (अ 0) ने इस पूरी सूरते हाल को एक लफ़्ज़ में वाज़ेअ कर दिया है के यह दिन दर हक़ीक़त प्यासों के सेराब होने का दिन था और लोग मुद्दतों से तष्नाकाम थे लेहाज़ा इनका टूट पड़ना हक़ बजानिब था।
  • इसमें कोई ‘ ाक नहीं है के तिजारत और सनअत का मुआसेरे की ज़िन्दगी में रीढ़ की हड्डी का काम करते हैं और उन्हीं के ज़रिये मुआशरे की ज़िन्दगी में इस्तेक़रार पैदा होता है, यही वजह है के मौलाए कायनात ने इनके बारे में ख़ुसूसी नसीहत फ़रमाई है और उनके मुफ़सेदीन की इस्लाह पर ख़ुसूसी ज़ोर दिया है।
  • इन्सान के लिये वजहे इफ़्तेख़ार सिर्फ़ एक चीज़ है के इसका मालिक परवरदिगार है जो सारी कायनातत से बालातर है जैसा के मौलाए कायनात ने अपनी मुनाजात में इशारा किया है के ‘‘ ख़ुदाया! मेरी इज़्ज़त के लिये यह काफ़ी है के मैं तेरा बन्दा हूँ और मेरे फ़ख़्र के लिये यह काफ़ी है के तू मेरा रब है।
  • की सबसे अधिक लोकप्रियता का भी केवल यही कारण है, उसके अतिरिक्त बहुत अधिक ऐसी हदीसें भी मौजूद हैं जो आपकी श्रेष्ठता को सिद्ध करती हैं जैसा कि खुद आयते मुबाहेला से भी यही सिद्ध होता है क्यूँकि उसमें मौलाए काएनात अर्थात ब्रह्माण्ड के स्वामी हज़रत अली (अ.) को पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की आत्मा बताया गया है।
  • (((खुली हुई बात है के “ फ़िक्र हरकस बक़द्रे रहमत ओस्त ” दुनिया का इन्सान कितना ही बलन्द नज़र और आली हिकमत क्यों न हो जाए मौलाए कायनात (अ 0) की बलन्दीए फ़िक्र को नहीं पा सकता है और इस दरजए इल्म पर फ़ाएज़ नहीं हो सकता है जिस पर मालिके कायनात ने बाबे मदीनतुल इल्म को फ़ाएज़ किया है।
  • इसमें मौलाए कायनात अमीरूल मोमेनीन (अ 0) के वह ख़ुतूत और तहरीरें दर्ज हैं जो आपने अपने मुख़ालेफ़ीन और अपने क़लमर्द के मुख़्तलिफ़ ‘ ाहरों के हाकमो के नाम भेजी हैं और इसमें कारिन्दों के ना जो हुकूमत के परवाने और अपने साहेबज़ादों और साथियों के नाम जो वसीयत नामे लिखे हैं याा हिदायतें की हैं, उनका इन्तेख़ाब भाी दर्ज है।
  • (((-रसूले अकरम (स 0) के दौर में अब्दुल्लाह बिन उबी और मौलाए कायनात (अ 0) के दौर में अषअत बिन क़ैस जैसे अफ़राद हमेषा रहे हैं जो बज़ाहिर साहेबाने ईमान की सफ़ों में रहते हैं लेकिन इनका काम बातों का मज़ाक़ उड़ाकर उन्हें मुष्तबा बना देने और क़ौम में इन्तेषार पैदा कर देने के अलावा कुछ नहीं होता है।
  • मौलाए कायनात (अ 0) ने इस हक़ीक़त का इज़हार मलाएका के कमाल के ज़ैल में फ़रमाया है लेकिन मक़सद यही है के इन्सान इस सूरते हाल से इबरत हासिल करे और अषरफ़ुल मख़लूक़ात होने का दावेदार है तो किरदार में भी दूसरी मख़लूक़ात के मुक़ाबले में अषरफ़ीयत का मुज़ाहेरा करे वरना दावाए बे दलील किसी मन्तिक़ में क़ाबिले क़ुबूल नहीं होता है।
  • दर हक़ीक़त मौलाए कायनात ने इन फ़ोक़रात में मरने वालों के हालात का ज़िक्र नहीं किया है बल्कि ज़िन्दा अफ़राद को इस सूरते हाल से बचाने का इन्तेज़ाम किया है के इन्सान इस अन्जाम से बाख़बर है और चन्द रोज़ा दुनिया के बजाए अबदी आक़ेबत और आखि़रत का इन्तेज़ाम करे जिससे बहरहाल दो चार हाोना है और इससे फ़रार का कोई इमकान नहीं है।
  • दूसरा फ़िक़रा इस बात की दलील है के बातिल खि़लाफ़त से मुकम्मल अद्ल व इन्साफ़ और सुकून व इत्मीनान की तवक़्क़ो मुहाल है लेकिन मौलाए कायनात (अ 0) का मनषा यह है के अगर ज़ुल्म का निषाना मेरी ज़ात होगी तो बरदाष्त करूंगा लेकिन अवामुन्नास होंगे और मेरे पास माद्दी ताक़त होगी तो हरगिज़ बरदाष्त न करूंगा के यह अहदे इलाही के खि़लाफ़ है।
  • (((-बनी तमीम के सरदार अहनफ़ बिन क़ैस से खि़ताब है जिन्होंने रसूले अकरम (स 0) की ज़ेयारत नहीं की मगर इस्लाम क़ुबूल किया और जंगे जमल के मौक़े पर अपने इलाक़े में उम्मुल मोमेनीन के फ़ित्नों का दिफ़ाअ करते रहे और फिर जंगे सिफ़फ़ीन में मौलाए कायनात के साथ “ ारीक हो गए और जेहाद राहे ख़ुदा का हक़ अदा कर दिया।-)))
  • तलाष कीजिये आज के दौर के साहेबाने तक़वा और मदअयाने परहेज़गारी की बस्ती में, कोई एक “ ाख़्स भी ऐसा जामेअ सिफ़ात नज़र आता है और किसी इन्सान के किरदार में भी मौलाए कायनात के इरषाद की झलक नज़र आती है, और अगर ऐसा नहीं है तो समझिये के हम ख़यालात की दुनिया में आबाद हैं और हमारा वाक़ेयात से कोई ताल्लुक़ नहीं है-)))
  • (((-जिस तरह मालिक ने रसूले अकरम (स 0) को जाहेलीयत के अन्धेरे में सिराजे मुनीर बनाकर भेजा था उसी तरह फ़ितनों के अन्धेरों में मौलाए कायनात की ज़ात एक रौषन चिराग़ की है के अगर इन्सान इस चिराग़ की रौषनी में ज़िन्दगी गुज़ारे तो कोई फ़ित्ना उस पर असर अन्दाज़ नहीं हो सकता है और किसी अन्धेरे में उसके भटकने का इमकान नहीं है।
  • (((-इस मुक़ाम पर मौलाए कायनात ने इस नुक्ते की तरफ़ मुतवज्जो करना चाहा है के तक़वा का फ़ायदा सिर्फ़ आखि़रत तक महदूद नहीं है के तुम यहाँ गुनाहों से परहेज़ करो, मालिक वहां तुम्हें आतिषे जहन्नम से महफ़ूज़ कर देगा बल्कि यह तक़वा आखि़रत के साथ दुनिया के हर मरहले पर काम आने वाला है और किसी मरहले पर इन्सान को नज़रअन्दाज़ करने वाला नहीं है।
  • की शहादत के सिलसिले में निकाल गए ताबूत के जुलूस में बहाबी आतंकवादियों के हमले की हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद कल्बे जवाद नक़वी नें कड़े शब्दों में आलोचना करते हुए कहा कि मौलाए काएनात के ताबूत पर होने वाले हमला, कुछ महीनों पहले लखनऊ के वज़ीरगंज में मजलिस में हुए हमले के विषय में प्रशासन की लापरवाही की वजह से चरमपंथियों का हौसला बढ़ने की वजह से हुआ।
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