रामधारी सिंह 'दिनकर' sentence in Hindi
pronunciation: [ raamedhaari sinh 'dinekr' ]
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- *साभार: कविताकोश आग की भीख-रामधारी सिंह 'दिनकर' (सामधेनी) धुँधली हुईं दिशाएँ, छाने लगा कुहासा, कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँ-सा।
- (रामधारी सिंह 'दिनकर') विशेष नोट: बचपन में पाठ्यपुस्तकों में जिन कवियों को पढ़ाया गया, उनमें रामधारी सिंह 'दिनकर' का नाम प्रमुख है...
- सरहद के पार से / रामधारी सिंह 'दिनकर' / सामधेनी जन्मभूमि से दूर, किसी बन में या सरित-किनारे, हम तो लो, सो रहे लगाते आजादी के नारे।
- (रामधारी सिंह 'दिनकर' जी का यह आलेख श्री कनक तिवारी जी ने इतवारी अखबार के लिये उपलब्ध कराई थी जिसे हमने आपके लिये प्रस्तुत किया इतवारी अखबार से साभार)
- मैं तो विज्ञानं की छात्रा रही हूँ...लेकिन मेरी माँ ने हिंदी में एम. ए. किया है और वो राष्ट्रकवि सर्वश्री रामधारी सिंह 'दिनकर' की छात्रा रह चुकीं हैं....प्रत्युत्तर देंहटाएं
- -रामधारी सिंह ' दिनकर' (सामधेनी) थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है-रामधारी सिंह 'दिनकर' / सामधेनी वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है;
- सेवक सैन्य कठोरहम चालीस करोड़कौन देख सकता कुभाव से ध्वजे, तुम्हारी ओरकरते तव जय गानवीर हुए बलिदान,अंगारों पर चला तुम्हें ले सारा हिंदुस्तान!प्रताप की विभा, कृषानुजा, नमो, नमो!-रामधारी सिंह 'दिनकर'
- चित्र: विकीमीडिया 'द्वान्दगीत' के कुछ छंद पढ़िए-राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर उनके द्वारा रचित 'द्वन्दगीत' के कुछ छंद आपके समक्ष रखना चाहूँगा ।
- चित्र: विकीमीडिया 'द्वान्दगीत' के कुछ छंद पढ़िए-राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर उनके द्वारा रचित 'द्वन्दगीत' के कुछ छंद आपके समक्ष रखना चाहूँगा ।
- स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे, “रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे, रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को, स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।”-रामधारी सिंह 'दिनकर' (संग्रह: सामधेनी)
- *साभार: कविताकोश समर निंद्य है / भाग १ और २-रामधारी सिंह 'दिनकर' भाग-१ समर निंद्य है धर्मराज, पर, कहो, शान्ति वह क्या है, जो अनीति पर स्थित होकर भी बनी हुई सरला है?
- युगीन भावनाओं एवं राष्ट्रीय परिवेश के आवरण में शिव को तांडव, क्रांति और विध्वंस का प्रतीक मानकर काव्य रचनेवालों में कविवर आरसी, केदारनाथ मिश्र 'प्रभात' नाथूराम 'शंकर', रामकुमार वर्मा, रामधारी सिंह 'दिनकर' एवं सुमित्रानंदन पंत प्रमुख हैं।
- *साभार: कविताकोश समर निंद्य है / भाग ३ और ४-रामधारी सिंह 'दिनकर' भाग-३ न्याय शान्ति का प्रथम न्यास है जब तक न्याय न आता, जैसा भी हो महल शान्ति का सुदृढ़ नहीं रह पाता।
- फलक क्षमा का ओढ़ छिपाते जो अपनी कायरता, वे क्या जानें प्रज्वलित-प्राण नर की पौरुष-निर्भरता? वे क्या जाने नर में वह क्या असहनशील अनल है, जो लगते ही स्पर्श हृदय से सिर तक उठता बल है?-रामधारी सिंह 'दिनकर'
- त्याग अंक में पले प्रेम शिशु उनमें स्वार्थ बताना क्या दे कर हृदय हृदय पाने की आशा व्यर्थ लगाना क्या-डॉ. हरिवंशराय 'बच्चन' रश्मिरथी / प्रथम सर्ग-रामधारी सिंह 'दिनकर' 'जय हो' जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को,
- व्यक्ति साधना ही से होता दानी! जिस क्षण हम यह देख सामनें स्मारक अमर प्रणय काप्लावित हुए, वही क्षण तो है अपनी अमर कहानी!रचनाकाल/स्थल: २० दिसम्बर १९३५, आगरा अज्ञेय करघा: रामधारी सिंह 'दिनकर' हर ज़िन्दगी कहीं न कहींदूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।
- श्री रामधारी सिंह ' दिनकर' जी की रचनये बचपन मे बहुत... श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' जी की रचनये बचपन मे बहुत पढते थै, ओर याद ना रखने पर पापा से ओर कभी कभी मास्टर जी से मार भी खाते थे,लेकिन सभी रचानये अभी तक याद है जितनी पढी थी....
- कुछ भी तो है नहीं धरा दुनिया के अन्दर । ' छत पर से पत्नी चिल्लायी: “ दौड़ो, बन्दर!” ('तार सप्तक' से) स्वाधीन भारत की सेना: रामधारी सिंह 'दिनकर' जाग रहे हम वीर जवान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान! हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल, हम नवीन भारत के सैनिक, धीर,वीर,गंभीर, अचल ।
- ताज़ी घटनाएँ, 2 4 अरुन्धती, 3 4 रामधारी सिंह 'दिनकर', 4 4 अहमदाबाद, 5 4 तुलसीदास, 6 3 भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम, 7 3 पार्वती, 8 3 कम्बोडिया, 9 3 माइक्रोसॉफ्ट, 10 3 प्रस्थानत्रयी, 11 3 आकूति, 12 3 शतरूपा, 13 3 स्वयंभुव मनु, 14 3 देवहूति, 15 3 सावित्री (सत्यवान की
- समर निंद्य है / भाग ५ और ६-रामधारी सिंह 'दिनकर' भाग-५ जिनकी भुजाओं की शिराएँ फड़की ही नहीं, जिनके लहू में नहीं वेग है अनल का; शिव का पदोदक ही पेय जिनका है रहा, चक्खा ही जिन्होनें नहीं स्वाद हलाहल का; जिनके हृदय में कभी आग सुलगी ही नहीं, ठेस लगते ही अहंकार नहीं छलका; जिनको सहारा नहीं भुज के प्रताप का है, बैठते भरोसा किए वे ही आत्मबल का युद्ध को बुलाता है अनीति-ध्वाजधारी या कि वह जो अनीति-भाल पै गे पाँव चलता?
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