वृहदारण्यक उपनिषद sentence in Hindi
pronunciation: [ verihedaarenyek upenised ]
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- गीता में श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वाधाहमहमौषधम् (9 / 16) अर्थात् मैं ही औषधि हूँ तथा वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल) हूँ-अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां (10 / 26) वृहदारण्यक उपनिषद (3 / 9 / 28) में वृक्ष का दृष्टांत देकर पुरूष का वर्णन किया गया है क्योंकि पुरूष का स्वरूप वृक्ष के समान है।
- वृहदारण्यक उपनिषद (4.4.13) में कहा गया है कि-“ शरीर में प्रविष्ट यह आत्म तत्व जिसे प्राप्त हो गया है-यस्यानुवित्तः प्रतिबुद्ध आतमास्मिन सन्देहेय गहने प्रविष्टः।” वह सब कर्ता है-“स हि सर्वस्य कर्ता तस्य लोकः स उ लोक एव?” “उसे सबका कर्ता व लोक का स्वामी बताया गया किंतु तब वह और लोक दो होते हैं इसलिये अंतिम में जोडा गया हे-वही लोक भी है।
- (वृहदारण्यक उपनिषद ६ / ४ / १, २) लेकिन ऐसा भी नहीं है कि रति कि्रया केवल सन्तान प्राप्ति के जरिये के रूप में ही मान्य, क्योंकि उपनिषदों में स्पष्ट शब्दों में आया है कि यदि पति पत्नी किसी कारणवश गर्भधान नहीं करना चाहते है ता उसके लिए यौन कर्म करते समय इस मंत्र का जाप करें ' इन्द्रेयेण ते रेतसा रेत आददे (बृहदारण्यक उपनिषद्) ‘ ऐसा करने पर पत्नी गर्भवती नहीं होती है।
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