शब्दब्रह्म sentence in Hindi
pronunciation: [ shebdebrhem ]
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- जिस शब्द में यह सारा जगत उत्पन्न हुआ है, ऐसा आभास होता है, उस शब्द को वह शब्दतत्व अथवा शब्दब्रह्म कहता है।
- व्याकरणशास्त्र ही शब्दब्रह्म के अभ्यास का एक मात्र सरल सुबोध उपाय होने से मोक्ष का सीधा मार्ग है, ऐसा भर्तृहरि का कहना है।
- इसे समझ सकेंगे तो कल्पवृक्ष, शब्दब्रह्म, इन्द्र की सहस्र आँखें, मंत्रशक्ति, नाम लेते ही ईश्वर के उपस्थित हो जाने जैसे कई रहस्य समझा सकेंगे।
- बड़थ्वाल ने गरीबदास के आधार पर लिखा है कि “शब्द, गुरु की शिक्षा, सिचण, पतोला, कूची, बाण, मस्क, निर्भयवाणी, अनहद वाणी, शब्दब्रह्म और परमात्मा के रूप में प्रयुक्त हुआ है”
- क्योंकि (हि) इस समतारूपी योग का (योगस्य) जिज्ञासु भी (जिज्ञासुः अपि) वेदोक्त कर्मों के फलों का (शब्दब्रह्म) अतिक्रमण कर जाता है (अतिवर्तते) ।
- उत्तर-मित्रो! अब ज्ञात होता है कि ईश्वर, परमेश्वर, ब्रह्म, परब्रह्म, शब्दब्रह्म ये तो मुझ में पहले भी थे और मैं इनसे ही निकला था, मुझे पता न था.
- साहित्य में इस प्रकार के अनेक शब्दब्रह्म हैं, जिन्हें कविजनों ने मुख्य यौगिक शब्द बनाकर उनके स्वाभाविक अर्थों के अतिरिक्त यमक श्लेषादि अलंकारों के अन्य अर्थों को भी व्यक्त करते हुए साहित्य को सहज सुंदर बना दिया है।
- उत्तर-यद्यपि इस श्रुति मार्ग या अनहद मार्ग का वर्णन उपनिषद आदि में है और शब्दब्रह्म का संकेत गरुड़ पुराण में भी है मगर आप लोग कितने हैं जो इस मार्ग पर चलते हैं? इसलिए कलयुग में जीवों के कल्याण के लिए:-
- ज्ञानार्णव को तरंगित करने हेतु ग्रन्थालय पारम्परिक एवम् समसामयिक अध्ययन को सेतुबद्ध करने हेतु संगोष्ठियाँ अन्तस् की दृष्टियों को शब्दब्रह्म में परिणत करने हेतु व्याख्यानों का शुभारम्भ, वैदिक वाङ्मय, साहित्य, व्याकरण, ज्योतिष, दर्शन, पुराणेतिहास, शिक्षा आदि के सन्दर्भों में साम्प्रतिक ज्ञान-विज्ञान को बाँधने और बेधने लगा है।
- यही कारण है कि उसे अपने प्रयत्नों से कोई लाख-करोड़ उपाय करे, तब तक नहीं जान सकता है, जब तक कि परमात्मा स्वयं अपना अज्ञानान्धकार रूप पर्दा हटाकर अपने यथार्थतः ‘ आत्मतत्त्वं ' रूप शब्दब्रह्म रूप परमब्रह्म परमेश्वर को तत्त्वज्ञान द्वारा ही जना-दिखा-मिला एवं पहचान न करा दे।
- ' विहग के प्रति ' नाम की कविता में कवि ने अव्यक्त प्रकृति के बीच चैतन्य के सान्निधय से, शब्दब्रह्म के संचार या स्पंदन (बाईब्रेशन) से, सृष्टि के अनेक रूपात्मक विकास का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है, मुक्त पंखों में उड़ दिन रात सहज स्पंदित कर जग के प्राण।
- मानिनी विदुषी अर्चना वर्मा ने पवन करण की शहद के छत्तों और दशहरी आमों वाली कविता में संस्कृत के व्याकरण दर्शन के आचार्य भर्त्ृहरि के शब्दब्रह्म स्फोट का संधान किया है (अगस्त पृष्ठ 9) और अभिमानिनी विदुषी अनामिका ने अपनी उन्नत पहाडों की गहरी गुफाओं वाली कविता को '' कालिदास की पंक्तियों से अन्तर्पाठीय संवाद करती ''
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