शिवदान सिंह चौहान sentence in Hindi
pronunciation: [ shivedaan sinh chauhaan ]
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- उस समय शिवदान सिंह चौहान ' हंस' पत्रिाका के संपादक और प्रगतिशील लेखक संद्घ के राज्य सचिव थे।
- शिवदान सिंह चौहान के आलेख का शीर्षक था-‘ भारत में प्रगतिशील साहित्य की आवश्यकता ' ।
- हिन्दी की प्रगतिवादी आलोचना में रामविलास शर्मा और शिवदान सिंह चौहान के बीच छीछालेदर-काण्ड सम्पन्न हो चुका था।
- १०. मार्क्सवादी आलोचना और शिवदान सिंह चौहान ;आलोचनाद्ध-लेखक-मधुरेश, प्रकाशक-आधार प्रकाशन, एस.सी.एपफ-२६७, सेक्टर-१६, पंचकूला-१३४ ११३ ;हरियाणाद्ध, मूल्य २५० रुपये।
- प्रेमचन् द्र जी के अवसान के बाद इसका सम् पादन, शिवदान सिंह चौहान तथा अमृतराय जी ने किया।
- आपने अपनी पत्रिका ‘सर्वनाम ' में आलोचक शिवदान सिंह चौहान को जगह दी और उनके ऐतिहासिक महत्व का स्मरण किया।
- उसी के जुलाई, १ ९ ६ १ के अंक में प्रसिद्ध आलोचक शिवदान सिंह चौहान ने लिखा था:
- 1939 ई. में शिवदान सिंह चौहान ने एक निबंध लिखा था-‘ छायावादी कविता में असंतोष भावना '.
- जैनेन्द्र और शिवरानी देवी के बाद इसके संपादक शिवदान सिंह चौहान और श्रीपत राय फिर अमृतराय और फिर नरोत्तम नागर रहे।
- ४ ५ में उन्होंने त्रिालोचन की ' धरती ' छापी और बाद में शिवदान सिंह चौहान का ' प्रगतिवाद ' ।
- जैनेन्द्र और शिवरानी देवी के बाद इसके संपादक शिवदान सिंह चौहान और श्रीपत राय फिर अमृत राय और फिर नरोत्तम नागर रहे।
- लोगों का यह ख्याल गलत है कि रामविलास शर्मा, शिवदान सिंह चौहान तथा हिन्दी उर्दू के विवाद के कारण संगठन कमजोर हुआ।
- उन्होंने स्वयं कहा है कि ” बनारस में शिवदान सिंह चौहान के सत्संग से सहित्य के प्रगतिशील आंदोलन में कुछ दिलचस्पी पैदा हुई।
- यही वह संदर्भ था जिसकी वजह से शिवदान सिंह चौहान, राहुल सांकृत्यान, यशपाल, रांगेय गाघव आदि से उनकी टकराहट हुई।
- शिवदान सिंह चौहान स्वीकार कर चुके थे कि संघ परिवार का गुप्त एजेंडा फासीवाद है और उससे लड़ने वाले वामपंथी कोई हैं ही नहीं।
- शिवदान सिंह चौहान को प्रेमचंद द्वारा १९१९ में ' ८ामाना' में यह लिखा देखना चाहिए था कि, 'पूँजी और संपत्ति से खूनी लड़ाइयाँ लड़नी पड़ेंगी।
- शिवदान सिंह चौहान लिखते हैं कि, 'वे ;प्रेमचंदद्ध श्रेणी संद्घर्ष को अस्वीकार कर उच्च श्रेणियों के विशेष 'हक' मानकर अन्त में समझौता करा देते हैं।
- रामविलास शर्मा और शिवदान सिंह चौहान के संपर्क में आने से इनका झुकाव मार्क्सवादी चिंतन की तरफ़ गया, जिससे ये प्रगतिशील आन्दोलन के साथ जुड़ गए।
- वहां शिवदान सिंह चौहान जैसी आलोचनात्मक प्रतिभा को यह दिन देखना पड़े, उससे शोचनीय दशा किसी भाषा साहित्य की और क्या हो सकती है.
- ' आलोचना ' के जनवरी, 1966 (सम्पादक-शिवदान सिंह चौहान) में उनका एक निबन्ध प्रकाशित हुआ ' हिन्दी में आँचलिक उपन्यास ' ।
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