साहित्यदर्पण sentence in Hindi
pronunciation: [ saahiteyderpen ]
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- आचार्य विश्वनाथ ने साहित्यदर्पण में श्रुत्यानुप्रास की परिभाषा इस प्रकार की है-
- ‘ साहित्यदर्पण ' में भयानक रस को ‘ स्त्रीनीचप्रकृति: ' कहा गया है।
- और हावों के नाम लेने पर चौंके हैं उन्हें जानना चाहिए कि साहित्यदर्पण में
- साहित्यदर्पण में नाटक के लक्षण, भेद आदि अधिक स्पष्ट रूप से दिए हैं ।
- पू. आ. श्री हेमचंद्रसूरिजी रचित ‘काव्यप्रकाश' का अनुगामी और साहित्यदर्पण का पूर्वगामि ग्रंथ है।
- (४) साहित्यदर्पण-अळङ्कार (ISBN: 81-7411-12-7) प्रकाशक: विद्यापुरी, बालु बजार, कटक, ओड़िशा, १९९५.
- पंडित विश्वनाथ कविराज के साहित्यदर्पण में भारतीय नाट्य पद्धति पर विस्तार से चर्चा हुई है।
- साहित्यदर्पण में नाटक के लक्षण, भेद आदि अधिक स्पष्ट रूप से दिए हैं ।
- कुछ ग्रंथों में ' काव्यप्रकाश ' और ' साहित्यदर्पण ' का भी आधार पाया जाता है।
- आचार्य विश्वनाथ ने अपने ग्रंथ साहित्यदर्पण में ओज गुण को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया हैः
- साहित्यदर्पण के मुग्धा के उदाहरण (दत्तोसालसमंथर...इत्यादि) को हिन्दी में बहुत ही सुंदरता से लाए हैं-
- इस रस का वर्णन अपने ग्रंथ साहित्यदर्पण में आचार्य विश्वनाथ ने निम्नलिखित शब्दों में किया है-
- ' साहित्यदर्पण ' प्रत्यक्षीकरण और गुणागुण विवेचन के अर्थ में रस परीक्षा शब्द का प्रयोग करता है।
- साहित्यदर्पण के अनुसार नाटक किसी ख्यात वृत्त (प्रसिद्ध आख्यान, कल्पित नहीं) ' की लेकर लिखाना चाहिए ।
- ' साहित्यदर्पण ` के अनुसार मागधी नपुंसकों, किरातों, बौनों, म्लेच्छों, आभीरों, शकारों, कुबड़ों आदि द्वारा बोली जाती है।
- मौलिक संस्कृत गीतिकाव्य), नैषधमहाकाव्ये धर्मशास्त्रीय-प्रतिफलनम्, साहित्यदर्पण: अलंकार, गायत्री-सहस्र-नाम (ओड़िआ अनुवाद), मनोहर पद्यावली (संपादित), स्वभावकवि गङ्गाधर मेहेर-कृत ओड़िआ “तपस्विनी” महाकाव्य का सम्पूर्ण हिन्दी अनुवाद,
- माधुर्य गुण की चर्चा करते हुए आचार्य विश्वनाथ साहित्यदर्पण में लिखते हैं कि चित्त का द्रवीभावयुक्त आह्लाद अर्थात् अन्तःकरण को द्रुत करनेवाला आह्लाद माधुर्य कहलाता है-
- आचार्य विश्वनाथ अपने साहित्यदर्पण में कहते हैं कि संभोग शृंगार, करुण, विप्रलम्भ शृंगार और शान्त रस में क्रम से माधुर्य की अधिकता पायी जाती है-
- अब टीकाकर्ता को मत तथा साहित्यदर्पण को मत-सत्व, विशुद्ध, अखंड स्वप्रकाश, आनंद, चित, अन्य ज्ञान नहि संग, ब्रह्मास्वाद, सहोदर रस।
- केशव मिश्र के अलंकारशेखर से व्यक्त होता है कि साहित्यदर्पण का यह काव्य लक्षण आचार्य शौद्धोदनि के “काव्यं रसादिमद् वाक्यम् श्रुर्त सुखविशेषकृत्” का परिमार्जित एवं संक्षिप्त रूप है।
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