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कुंअर बेचैन sentence in Hindi

pronunciation: [ kunar bechain ]
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  • डॉ. कुंअर बेचैन कभी उफनती हुई नदी हो, कभी नदी का उतार हो मां रहो किसी भी दिशा-दिशा में, तुम अपने बच्चों का प्यार हो मां नरम-सी बांहों में खुद झुलाया, सुना के लोरी हमें सुलाया जो नींद भर कर कभी न सोई, जनम-जनम की जगार हो मां भले ही दुख को छुपाओ हमसे,...
  • खुशबू की लकीर ही है-डॉ. कुंअर बेचैन की काव्य-यात्रा. कल यानी १ दिसंबर ०९ को राजभाषा मंच की ओर से आयोजित साहित्य अकादमी के कर्यक्रम-कुंअर बेचैन के एकल काव्य-पाठ में शामिल होना एक सुखद-अनुभूति की तरह था.सचमुच बेहद सुरीली आवाज के मालिक कुंअर बेचैन को माँ सरस्वती ने अपनी कृपा से समृद्ध किया है.लगभग दो घंटे के इस कर्यक्रम में-
  • खुशबू की लकीर ही है-डॉ. कुंअर बेचैन की काव्य-यात्रा. कल यानी १ दिसंबर ०९ को राजभाषा मंच की ओर से आयोजित साहित्य अकादमी के कर्यक्रम-कुंअर बेचैन के एकल काव्य-पाठ में शामिल होना एक सुखद-अनुभूति की तरह था.सचमुच बेहद सुरीली आवाज के मालिक कुंअर बेचैन को माँ सरस्वती ने अपनी कृपा से समृद्ध किया है.लगभग दो घंटे के इस कर्यक्रम में-
  • दुष्यंत के बाद हिंदी ग़ज़ल परंपरा में शंभुनाथ सिंह, नरेन्द्र वशिष्ठ, भवानी शंकर, चंद्रसेन विराट, शेरजंग गर्ग, कुंअर बेचैन, नित्यानंद तुषार, ज़हीर कुरैशी, डॉ. सूर्यभानु गुप्त, गिरिराजशरण अग्रवाल, राजेश रेड्डी, विज्ञान व्रत, तुफैल चतुर्वेदी, डॉ. उर्मिलेश जैसे ग़ज़लकारों के अलावा बशीर बद्र और निदा फाज़ली जैसे उर्दू लहज़े के शायरों का नाम लिया जा सकता है।
  • ब्रज के लोकनृत्यों, मुहूर्त, लोकधर्मी नाट्य परंपरा, आल्हा, बिरहा, नौटंकी, बुंदेलखंड के पारंपरिक लोक-चित्रांकन, लोक कलाओं में स्त्रियों की भागीदारी, प्रयाग, निमाड़, सोनभद्र के सांस्कृतिक संदर्भ, बूंदी की कला, इलाहाबाद संग्रहालय और आलोक पुराणिक का यात्रा वृत्तांत, कुंअर बेचैन और विष्णु सक्सेना के गीत, नीलिम कुमार, सुधीर, महेश्वर की कविताएं, नरेश शांडिल्य एवं डॉ.
  • जागो श्रोता जागो-दो विश्व उपभोक्ता दिवस की पूर्व संध्या पर जयपुर के बिड़ला सभागार में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन को डॉ. कुंअर बेचैन ने नई ऊंचाइयां बख्शीं: हालांकि ये पंक्तियां पहले भी सुनी होंगी आपने, फिर भी प्रस्तुत हैं-ये सोच के मैं उम्र की ऊंचाइयां चढ़ा, शायद यहां, शायद यहां, शायद यहां है तू पिछले कई जन्मों से तुझे ढूंढ़ रहा हूं, जाने कहां, जाने कहां, जाने कहां है तू।
  • काज़ी तनवीर, प्रकाश प्रलय, डा ० प्रेमलता ‘ नीलम ', भगवान सिंह ‘ हंस ', नीरज नैथानी, बी ० एल ० गौड, राजकुमार सचान होरी, डा ० कुंअर बेचैन, अरूण सागर, राजमणि, डा ० रिचा सूद, कुंवर ज़ावेद, श्यामल मजूमदार, जयकुमार रूसवा, डा ० मधु चतुर्वेदी, पं ० सुरेश नीरव तथा अरविंद पथिक ने भी संक्षिप्त एवं सारगर्भित काव्यपाठ किया।
  • ब्रज के लोकनृत्यों, मुहूर्त, लोकधर्मी नाट्य परंपरा, आल्हा, बिरहा, नौटंकी, बुंदेलखंड के पारंपरिक लोक-चित्रांकन, लोक कलाओं में स्त्रियों की भागीदारी, प्रयाग, निमाड़, सोनभद्र के सांस्कृतिक संदर्भ, बूंदी की कला, इलाहाबाद संग्रहालय और आलोक पुराणिक का यात्रा वृत्तांत, कुंअर बेचैन और विष्णु सक्सेना के गीत, नीलिम कुमार, सुधीर, महेश्वर की कविताएं, नरेश शांडिल्य एवं डॉ. सोमदत्त शर्मा के दोहे आपको समकालीन कविता से रूबरू कराएंगे तथा प्रदीप चौबे की व्यंग्य छणिकाएं गुदगुदाएंगी और भी बहुत कुछ मिलेगा आपको इस अंक में।
  • कुंअर बेचैन 1 तू है तो मेरी ज़िन्दगी इक साज़ लगे है इन धड़कनों में भी तेरी आवाज़ लगे है क्यूं वर्ना मेरी सांसें ये घुंघरू सी बजे है चलने में इनके तेरा ही अंदाज़ लगे है आकाश को छू आते हैं लफ्जों के परिंदे लफ्जों में मेरे, तेरी ही परवाज़ लगे है क्या बा त है पता ही नहीं मुझको अभी तक मैं जिससे मिला ही नहीं, हमराज़ लगे है देखा है उसे जब से उसे सोच रहा हूं मुझको तो मुहब्बत का ये आग़ाज़ लगे है
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