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श्यामसुन्दरदास sentence in Hindi

pronunciation: [ sheyaamesunedredaas ]
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  • श्यामसुन्दरदास ने इस सम्बन्ध में लिखा है-“”सूर वास्तव में जन्मान्ध नहीं थे, क्योंकि श्रृंगार तथा रंग-रुपादि का जो वर्णन उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता।
  • सम्पादन में कृतियों की प्राचीनतम प्रति को अन्य भाषाओं का सामान्य परिचय और हिन्दी के ऐतिहासिक विकास का ज्ञान होना चाहिए”-रचना और अध्ययन का यह विवेक श्यामसुन्दरदास की बहुत बड़ी देन है।
  • ' ' (कबीर ग्रंथावली, डॉ. श्यामसुन्दरदास, पृ.35) इसी तरह छापा-तिलक लगाकर लोगों को ठगने वालों पर व्यंग्य करते हुए कबीर कहते हैं-‘‘ बैसनो भया तो का भया, बुझा नहीं विवेक।
  • साहित्यविनोद वा विद्याचन्द्रोदय जुलाई 1897 में बाबू श्यामसुन्दरदास बी. ए., पंडित जगन्नाथ मेहता, बाबू राधाकृष्णदास और पंडित सुधाकर द्विवेदी ने मिलकर साहित्यविनोद के नाम से एक पत्र निकालने का विचार किया जिसमें नई नई उपयोगी पुस्तकें क्रमश: प्रकाशित हुआ करें।
  • ' ' (कबीर ग्रंथावली, श्यामसुन्दरदास, पृ.35) आधुनिक भौतिकवादियों को कबीर की उपर्युक्त बात भले ही जमती न हो, किन्तु जीवन की कडवी सच्चाई यही है, जिसे नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि जीवन क्षण भंगुर है।
  • ' ' (कबीर ग्रंथावली, डॉ. श्यामसुन्दरदास, पृ.89) कबीर का यह यक्ष प्रश्न हमें सोचने को विवश करता है कि जब सब मनुष्य एक ही ज्योति से उत्पन्न हुए हैं तो फिर यह छुआछूत और ऊँच-नीच का भेदभाव क्यों? कबीर का यह आक्रोश स्वाभाविक है, क्योंकि ऐसी कुत्सित सोच समाज को पतन की ओर धकेलती है।
  • श्यामसुन्दरदास ने इस सम्बन्ध में लिखा है-“”सूर वास्तव में जन्मान्ध नहीं थे, क्योंकि श्रृंगार तथा रंग-रुपादि का जो वर्णन उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता।” डॉक्टर हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है-“”सूरसागर के कुछ पदों से यह ध्वनि अवश्य निकलती है कि सूरदास अपने को जन्म का अन्धा और कर्म का अभागा कहते हैं, पर सब समय इसके अक्षरार्थ को ही प्रधान नहीं मानना चाहिए।
  • श्यामसुन्दरदास ने इस सम्बन्ध में लिखा है-“”सूर वास्तव में जन्मान्ध नहीं थे, क्योंकि श्रृंगार तथा रंग-रुपादि का जो वर्णन उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता।” डॉक्टर हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है-“”सूरसागर के कुछ पदों से यह ध्वनि अवश्य निकलती है कि सूरदास अपने को जन्म का अन्धा और कर्म का अभागा कहते हैं, पर सब समय इसके अक्षरार्थ को ही प्रधान नहीं मानना चाहिए।
  • श्यामसुन्दरदास ने इस सम्बन्ध में लिखा है-“”सूर वास्तव में जन्मान्ध नहीं थे, क्योंकि श्रृंगार तथा रंग-रुपादि का जो वर्णन उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता।” डॉक्टर हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है-“”सूरसागर के कुछ पदों से यह ध्वनि अवश्य निकलती है कि सूरदास अपने को जन्म का अन्धा और कर्म का अभागा कहते हैं, पर सब समय इसके अक्षरार्थ को ही प्रधान नहीं मानना चाहिए।
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sheyaamesunedredaas sentences in Hindi. What are the example sentences for श्यामसुन्दरदास? श्यामसुन्दरदास English meaning, translation, pronunciation, synonyms and example sentences are provided by Hindlish.com.