सारावली sentence in Hindi
pronunciation: [ saaraaveli ]
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- सूरदास का जन्म कब हुआ, इस विषय में पहले उनकी तथाकथित रचनाओं, 'साहित्य लहरी' और सूरसागर सारावली के आधार पर अनुमान लगाया गया था और अनेक वर्षों तक यह दोहराया जाता रहा कि उनका जन्म संवत 1540 वि0(सन 1483 ई.)
- बृहद् पाराशर होरा शास्त्र, जैमिनी सूत्र, बृहज्जातक, सारावली, जातकाभरण, दैवज्ञाभरण, फलदीपिका, प्रश्न मार्ग, कृष्णीयम्, माधवीयम् एवं मानसागरी जैसे होराशास्त्र के मानक या निबंध ग्रंथों में कालसर्प योग की चर्चा नहीं मिलती।
- ज्योतिष के मान्य फलित ग्रंथों बृहज्जातक, सारावली, फलदीपिका,बृहत् पाराशर इत्यादि के अनुसार मंगल क्रूर दृष्टि वाला,युवक,पतली कमर वाला,अग्नि के सामान कान्ति वाला,रक्त वर्ण,पित्त प्रकृति का,साहसी,चंचल,लाल नेत्रों वाला,उदार,अस्थिर स्वभाव का है |
- सूरदास का जन्म कब हुआ, इस विषय में पहले उनकी तथाकथित रचनाओं, ' साहित्य लहरी ' और सूरसागर सारावली के आधार पर अनुमान लगाया गया था और अनेक वर्षों तक यह दोहराया जाता रहा कि उनका जन्म संवत 1540 वि 0 (सन 1483 ई.)
- बृहत् पाराशर, सारावली, फलदीपिका आदि ग्रंथों के मतानुसार बुध सुन्दर, हास्य प्रिय, वात-पित्त-कफ प्रकृति का, कार्य करने में चतुर, मधुर भाषी, रजोगुणी, विद्वान, त्वचा व नस प्रधान शरीर वाला, कला कुशल, सांवले रंग का तथा हरे रंग के वस्त्र धारण करने वाला है |
- एक प्रकार से ' सूरसागर ' जैसा कि उसके नाम से सूचित होता है, उनकी सम्पूर्ण रचनाओं का संकलन कहा जा सकता है [3] ' सूरसागर ' के अतिरिक्त ' साहित्य लहरी ' और ' सूरसागर सारावली ' को भी कुछ विद्वान् उनकी प्रामाणिक रचनाएँ मानते हैं परन्तु इनकी प्रामाणिकता सन्दिग्ध है [4] ।
- कतिपय फलित ग्रन्थों यथा सारावली, बृ्हज्जातक, पाराशर, होरा शास्त्रम आदि में सर्प योग, नाग योग, सर्प वेष्ठित योग आदि कुछ योग अवश्य वर्णित हैं, किन्तु इन योगों का वर्तमान में प्रचलित इस कालसर्प योग से न तो योग रचना, अथवा ग्रह स्थिति के स्तर पर कोई साम्य है और न ही फलित के स्तर पर।
- इसके अतिरिक्त उनके अन्य ग्रंथ हैं-काव्य प्रभाकर (1905 / 1909), छंद सारावली (1917), अलंकार प्रश्नोत्तरी (1918), हिंदी काव्यालंकार (1918), काव्य प्रबंध (1918), काव्य कुसुमांजलि (1920), नायिका भेद शंकावली (1925), रस रत्नाकर (1927), अलंकार दर्पण (1936) आदि।
- महामहोपाध्याय जगन्नाथ भानु ने गद्य एवं पद्य दोनों में कालविज्ञान, श्रीकाल प्रबोध, अंक विलास, तुलसी तत्व प्रकाश, तुलसी भाव प्रकाश, श्रीरामायण वर्णमाला, रामायण प्रश्नोत्तरीमाला तथा पद्य कृतियों में छंद प्रभाकर, काव्य प्रभाकर, काव्यालंकार, छंद सारावली, रस रत्नाकर, नायिका भेद, शब्दावली, काव्य कुसुमांजलि, जयहरि चालीसा और तुम्हीं तो हो उल्लेखनीय हैं।
- सृष्टि प्रारंभ का लग्नचक्र-सारावली में उल्लेख है, कि प्रलय के समय जब सारा संसार अंधेरे में डूबा था तथा सर्वत्र जल ही जल था, उस समय भगवान सूर्य ने, अपने तेज से समस्त दिशाओं को प्रकाशित करते हुए, समस्त संसार, ग्रह, नक्षत्र, चक्र, आदि के द्वारा 12 अंग (राशि स्वरूप) बनाकर कालपुरुष को प्रस्तुत किया था।
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