प्ररूपण sentence in Hindi
pronunciation: [ perrupen ]
"प्ररूपण" meaning in EnglishSentences
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- दूसरे विभाग में 100 दुक हैं और प्रत्येक दुक में विधान ओर निषेध रूप से दो दो विषयों का प्ररूपण किया गया है।
- दूसरे विभाग में 100 दुक हैं और प्रत्येक दुक में विधान ओर निषेध रूप से दो दो विषयों का प्ररूपण किया गया है।
- इस अधिकार में पहले आठों मूलकर्मों और बाद में प्रत्येक कर्म की उत्तर प्रकृतियों को लेकर बंधस्थानों, उदयस्थानों और सत्वस्थानों का प्ररूपण है।
- किंतु वर्तमान में ऐसा न होकर इसके प्रथम खंड में हिंसादि पाँच पापों का और दूसरे खंड में अहिंसादि व्रतों का प्ररूपण पाया जाता है।
- प्रकृत अधिकार में प्रकृति और स्थिति का विस्तृत, सांगोपांग एवं मौलिक प्ररूपण है, जो पुस्तक 2,3 व 4 इन तीन में पूरा हुआ है।
- गृद्धपिच्छ के तत्त्वार्थसूत्र * में, जो जैन संस्कृत वाङमय का आद्यसूत्र ग्रन्थ है, सिद्धान्त के साथ दर्शन और न्याय का भी अच्छा प्ररूपण है।
- तेरहवें पूर्व क्रियाविशाल में लेखन, गणना आदि बहत्तर कलाओं, स्त्रियों के चौंसठ गुणों और शिल्पों, ग्रन्थरचना सम्बन्धी गुण-दोषों व छन्दों आदि का प्ररूपण किया गया था।
- इसमें प्राचीन काल के दार्शनिक वादों जैसे क्रियावाद, अक्रियावाद, नियतिवाद, अज्ञानवाद आदि का प्ररूपण तथा निराकरण किया गया है तथा श्रमण, ब्राह्मण, भिक्षु, निग्र्रंथ आदि के स्वरूप की व्याख्या की गई है।
- ऐसा प्रतीत होता है कि अन्त के जिन पूर्वों में कलाओं, विद्याओं, मन्त्र-तन्त्रों व इन्द्रजालों का प्ररूपण था, वे सर्वप्रथम ही मुनियों के संयमरक्षा की दृष्टि से निषिद्ध हो गये।
- पिछले अधिकार के अन्त में जो सत्वस्थान का कथन किया है वह आयु के बंध और अबंध का भेद न करके किया गया है तथा इस अधिकार में भंगों के साथ उनका प्ररूपण है।
- 11.-ग्यारहवीं पुस्तक में वेदना क्षेत्रविधान तथा कालविधान का विभिन्न अनुयोगद्वारों (अधिकारों) द्वारा वर्णन करके फिर दो चूलिकाओं द्वारा अरुचित अर्थ का प्ररूपण तथा प्ररूपित अर्थ विशिष्ट खुलासा किया है।
- इनमें से प्रथम तिक कुशल, अकुशल तथा अव्याकृत धर्मविषयक है, जो सबसे महत्वपूर्ण है और उसके विषय का प्ररूपण (1) चित्तुपपाद (2) रूप (3) निक्क्षेप और (4) अत्थुद्धार इन चार कांडों में किया गया है।
- इनमें से प्रथम तिक कुशल, अकुशल तथा अव्याकृत धर्मविषयक है, जो सबसे महत्वपूर्ण है और उसके विषय का प्ररूपण (1) चित्तुपपाद (2) रूप (3) निक्क्षेप और (4) अत्थुद्धार इन चार कांडों में किया गया है।
- इसका एक मुख्य कारण यह है कि इसका प्ररूपण सर्वज्ञ-सर्वदर्शी (जिनके ज्ञान से संसार की कोई भी बात छुपी हुई नहीं है, अनादि भूतकाल और अनंत भविष्य के ज्ञाता-दृष्टा),वीतरागी (जिनको किसी पर भी राग-द्वेष नहीं है)
- चौदहवीं पुस्तक में बन्धन अनुयोगद्वार द्वारा बन्ध, बन्धक, बन्धनीय (जिसमें 24 वर्गणाओं तथा पंचशरीरों का प्ररूपण है) तथा बन्ध विधान (इसका प्ररूपण नहीं है, मात्र नाम निर्देश है) इन 4 की प्ररूपणा की है।
- चौदहवीं पुस्तक में बन्धन अनुयोगद्वार द्वारा बन्ध, बन्धक, बन्धनीय (जिसमें 24 वर्गणाओं तथा पंचशरीरों का प्ररूपण है) तथा बन्ध विधान (इसका प्ररूपण नहीं है, मात्र नाम निर्देश है) इन 4 की प्ररूपणा की है।
- यद्यपि पश्चात्कालीन साहित्य में इनका स्थान-स्थान पर उल्लेख मिलता है, और उनके विषय का पूर्वोक्त प्रकार प्ररूपण भी यत्र-तत्र प्राप्त होता है, तथापि ये ग्रन्थ महावीर निर्वाण के १ ६ २ वर्ष पश्चात् क्रमशः विच्छिन्न हुए कहे जाते हैं।
- इसका एक मुख्य कारण यह है कि इसका प्ररूपण सर्वज्ञ-सर्वदर्शी (जिनके ज्ञान से संसार की कोई भी बात छुपी हुई नहीं है, अनादि भूतकाल और अनंत भविष्य के ज्ञाता-दृष्टा), वीतरागी (जिनको किसी पर भी राग-द्वेष नहीं है)
- इनमें से प्रथम तिक कुशल, अकुशल तथा अव्याकृत धर्मविषयक है, जो सबसे महत्वपूर्ण है और उसके विषय का प्ररूपण (1) चित्तुपपाद (2) रूप (3) निक्क्षेप और (4) अत्थुद्धार इन चार कांडों में किया गया है।
- दसवें पूर्व विद्यानुवाद में नाना विद्याओं और उपविद्याओं का प्ररूपण किया गया था, जिनके भीतर अंगुष्ट प्रसेनादि सातसौ अल्पविद्याओं, रोहिणी आदि पांचसौ महाविद्याओं एवं अन्तरिक्ष भौम, अंग, स्वर, स्वप्न, लक्षण, व्यंजन और छिन्न, इन आठ महानिमित्तों द्वारा भविष्य को जानने की विधि का वर्णन था।
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