1. इसका इस श्रुतांग में विस्तार से प्ररूपण पाया जाता है। 2. इनमें जैन कर्मसिद्धांत का बड़ी व्यवस्था तथा सूक्ष्मता से प्ररूपण किया गया है। 3. फिर सूत्र 45 से ग्रन्थान्त तक कृति अनेयागद्वार का विभिन्न अनुयोग द्वारों से प्ररूपण है। 4. * कि जिसमें विविध दृष्टियों-वादियों की मान्यताओं का प्ररूपण और उनकी समीक्षा है वह दृष्टिवाद है। 5. अद्वैतवादी भी एक नहीं थे, वे भिन्न भिन्न रूप में त व का प्ररूपण करते थे। 6. अंत में, कल्पना में बिंबों का संश्लेषण प्ररूपण (typification) द्वारा भी किया जाता है। 7. यह प्ररूपण सूक्ष्म तो है ही लेकिन आत्मा को विशुद्ध बनाने के लिए उसका भी जानना जावश्यक है। 8. आठवें पूर्व कर्मप्रवाद में नाना प्रकार के कर्मों की प्रकृतियों स्थितियों शक्तियों व परिमाणों आदिका प्ररूपण किया गया था। 9. इसी तरह शेष तीन गतियों और अन्य 13 मार्गणाओं में भी गुणस्थानों के अस्तित्व का प्ररूपण किया गया है। 10. उसके ऊपर अनन्तकाल का प्ररूपण किया गया है, और उसके भी जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेद बतलाये गये हैं।