1. ह्रद के भीतर अक्षोभ्य ऋषि विद्यमान थे। 2. तारा के शिव अक्षोभ्य है, इन्हे तारा अपने मस्तक पर बिठाये रखती है। 3. कामाख्या मन्त्र के ऋषि अक्षोभ्य , छन्द अनुष्टप्, देवता कामाख्या और सर्वासिद्धि के लिए विनियोग है । 4. प्रतिमा के साथ मोर व सर्प का भी अंकन है अतएव इसकी पहचान अक्षोभ्य से भी की गई है। 5. (हमलोग इस अक्षोभ्य समुद्र को महाबलवान् वानरों की सेना के साथ किस प्रकार पार कर सकेंगे?) 6. श्रीतारा देवी के शीर्ष स्थान पर ' अक्षोभ्य ' गुरु की प्रतिमा भी सुशोभित है तथा उसके ऊपर सर्प का फन बना हुआ है। 7. (1) अक्षोभ्य तंत्रोक्त द्वितीय विद्या के उपासक एक ऋषि का नाम है जो उक्त विद्या के देवता के सिर पर नागरूप में स्थित हैं। 8. (1) अक्षोभ्य तंत्रोक्त द्वितीय विद्या के उपासक एक ऋषि का नाम है जो उक्त विद्या के देवता के सिर पर नागरूप में स्थित हैं। 9. शिष्या त्संग चीह (सोजी) ने कहा, “ अक्षोभ्य बुद्ध भूमि का दर्शन धम्म है, उनके दर्श्न की पुनरावृति नहीं होती । 10. (2) अक्षोभ्य भगवान् बुद्ध का भी एक नाम है तथा पंचध्यानी बुद्धों में से एक बुद्ध को भी अक्षोभ्य संज्ञा से अभिहित किया जाता है।