1. कार्निया में व्रण हो जाने पर ऐट्रोपीन डालना आवश्यक है। 2. कार्निया में व्रण हो जाने पर ऐट्रोपीन डालना आवश्यक है। 3. यदि कार्निया में व्रण हो जाए तो ऐट्रोपीन का भी प्रयोग आवश्यक है। 4. यदि कार्निया में व्रण हो जाए तो ऐट्रोपीन का भी प्रयोग आवश्यक है। 5. तदुपरांत वनस्पतियों से अनेक सक्रिय पदार्थ निकाले गए जिनमें स्ट्रिकनीन, कैफ़ीन, एमिटीन, ऐट्रोपीन तथा क्विनीन आदि ऐलकलाएड हैं। 6. तदुपरांत वनस्पतियों से अनेक सक्रिय पदार्थ निकाले गए जिनमें स्ट्रिकनीन, कैफ़ीन, एमिटीन, ऐट्रोपीन तथा क्विनीन आदि ऐलकलाएड हैं। 7. सन् 1817 ई. तथा 1840 ई. के मध्य प्राय: समस्त महत्वपूर्ण ऐलकालॉयड, जैसे वेरट्रीन, स्ट्रिकनीन, पाइपरीन, क्वीनीन, ऐट्रोपीन , कोडीन आदि प्राप्त कर लिए गए। 8. यदि कार्निया का व्रण भी हो तो इनके साथ ऐट्रोपीन की बूँदें भी दिन में दो बार डालना और बोरिक घोल से नेत्र को धोना तथा उष्म सेंक करना उचित है। 9. यदि कार्निया का व्रण भी हो तो इनके साथ ऐट्रोपीन की बूँदें भी दिन में दो बार डालना और बोरिक घोल से नेत्र को धोना तथा उष्म सेंक करना उचित है।