1. तुम लोग कुष्ठी बन्धुओं की सेवा करो। 2. नानाजन्मसु स वृषस्ततः कुष्ठी दरिद्रकः ।। 3. पापी कुष्ठी होय मरे हैं, दिल से रहम बिसार के । 4. रोगी, कुष्ठी अथवा और किसी के साथ जैसी तुम्हारी इच्छा हो मेरा विवाह कर सकते हो। 5. रोगी, कुष्ठी अथवा और किसी के साथ जैसी तुम्हारी इच्छा हो मेरा विवाह कर सकते हो । 6. रोगी, कुष्ठी अथवा और किसी के साथ जैसी तुम्हारी इच्छा हो मेरा विवाह कर सकते हो । 7. -लग्न में मंगल, अष्टम में सूर्य तथा चतुर्थ में शनि हो तो वह कुष्ठी होता है। 8. आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मै किसी कुष्ठी और दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूँगा। 9. तब उसने अपनी कन्या का एक कुष्ठी के साथ विवाह कर दिया और अत्यन्त क्रुद्ध होकर पुत्री से कहने लगा कि जाओ-जाओ जल्दी जाओ अपने कर्म का फल भोगो। 10. बाबा बोले कि देखो, परिवार के लोग भी कुष्ठी बन्धु को घृणा की दृष्टि से देखते हैं, समाज के हर वर्ग के लोग तो उनसे घृणा करते ही हैं ।