इन कारणों से क्षयज खाँसी होती है और यह खाँसी शरीर का क्षय करने लगती है।
2.
5. क्षयज खाँसी: यह खाँसी क्षतज खाँसी से भी अधिक गंभीर, कष्ट साध्य और हानिकारक होती है।
3.
यह क्षयज खाँसी, टीबी (तपेदिक) रोग की प्रारंभिक अवस्था होती है अतः इसे ठीक करने में विलम्ब और उपेक्षा नहीं करना चाहिए।
4.
सिर दर्द 11 तरह के होते हैं-वातज, शंखक, अर्द्धविभेदक, सन्निपातज, रक्तज, क्षयज, पित्तज, कफज, कृमिज, सूर्यावर्त और अनन्तवात।
5.
आयुर्वेद ने खाँसी के 5 भेद बताए हैं अर्थात वातज, पित्तज, कफज ये तीन और क्षतज व क्षयज से मिलाकर 5 प्रकार के रोग मनुष्यों को होते हैं।
6.
क्षयज खाँसी के रोगी के शरीर में दर्द, ज्वार, मोह और दाह होता है, प्राणशक्ति क्षीण होती जाती है, सूखी खाँसी चलती है, शरीर का बल व मांस क्षीण होता जाता है, खाँसी के साथ पूय (पस) और रक्तयुक्त बलगम थूकता है।
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