व्यक्ति की चिकित्सा स्थिति के आधार पर नास्य के के द्वारा त्रिशाखी तंत्रिकाशूल, बेल का पक्षाघात, स्मरण एवं दृष्टिशक्ति में सुधार, अनिद्रा, चेहरे में से आधिक्य अति रंजकतायुक्त श्लेष्मा की समाप्ति, समय से पूर्व बाल पकना, आवाज में स्पष्टता, विभिन्न कारणों से उत्पन्न होने वाले सिरदर्द, आंशिक पक्षाघात, गन्ध एवं स्वाद में कमी, नाक का सूखना, कर्कशता, अकड़ा हुआ कंधा, अधकपारी, गर्दन का कड़ापन, नासीय प्रत्यूर्जता, नासीय पुर्वंगक, तंत्रिका संबंधी दुष्क्रिया, शरीर के निचले हिस्से में पक्षाघात, शिरानालशोथ के उपचार में लाभ शामिल हैं।
2.
दोनों हाथों में शनि पर्वत पर नक्षत्र का चिह्न हो, चंद्र पर्वत पर जाली हो, नखों की आकृति त्रिकोण हो, दोनों हाथों में आयु रेखा के अंत में नक्षत्र तथा भाग्य रेखा के अंत में शनि पर्वत पर नक्षत्र हो, मस्तक रेखा में से कोई शाखा निकलकर शनि पर्वत तक जाए तथा वहां त्रिशाखी हो जाए या तीन शुक्र मुद्रा हों लेकिन टुकड़ों में हों, शनि पर्वत पर क्राॅस हो मस्तक रेखा में शनि सूर्य पर्वत के नीचे यव हों, चंद्र पर्वत पर जाती हो तथा नख टुकड़े जैसे हों।
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