1. इसी काल में जीउत की पूजा पितृपूजा के रूप में होती है। 2. यह पितृपूजा ‘ मगध ' के भुइयाँ जाति के लोग करते हैं। 3. यमराज ने कहा, ” पहले भरतखण्ड पितृपूजा , वृद्धपूजा वगैराह के लिये प्रसिद्ध था। 4. श्राद्ध कर्म को पितृकर्म भी कहा गया है व पितृकर्म से तात्पर्य पितृपूजा भी है। 5. धर्म के क्षेत्र में जीववाद, जीविवाद, पितृपूजा आदि हिंदू धर्म के समीप लाकर भी उन्हें भिन्न रखते हैं। 6. धर्म के क्षेत्र में जीववाद, जीविवाद, पितृपूजा आदि हिंदू धर्म के समीप लाकर भी उन्हें भिन्न रखते हैं। 7. पास ही चट्टान पर दांतेदार वृत्ताकार की श्रृंखला है जो पत्थर युग से ही पितृपूजा के प्रतीक हैं। 8. धर्म के क्षेत्र में जीववाद, जीविवाद, पितृपूजा आदि हिंदू धर्म के समीप लाकर भी उन्हें भिन्न रखते हैं। 9. उत्तराखंड में भी हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग प्रतिदिन पितृपूजा कर चिड़ियों तथा जानवरों के लिये पत्तलों में खाना घर के बाहर रख देते हैं। 10. यह प्रेरणा मौखिक न होकर कार्यरूप होनी चाहिये यह नितान्त असम्भव है कि बाप बाबा को गाली दे और पुत्र में पितृपूजा की प्रेरणा उत्पन्न हो।