1. समझदारी पूर्वक मनुष्य भ्रम-मुक्त होता है, फलतः अपराध-मुक्त होता है। 2. मानव-परम्परा भ्रम-मुक्त होने से मोक्ष हुआ। 3. इसी के आधार पर जीवन के भ्रम-मुक्त होने की बात है। 4. व्यवस्था में जीने का मतलब है-मानव का अपराध-मुक्त होना, भ्रम-मुक्त होना। 5. इस स्थिति से निकलने के लिए आदमी का भ्रम-मुक्त और अपराध-मुक्त होना आवश्यक है। 6. भ्रम-मुक्त और अपराध-मुक्त होने की विधि क्या हो? सह-अस्तित्व को भले प्रकार से अध्ययन किया जाए।7. सह-अस्तित्व में अध्ययन पूर्वक मनुष्य भ्रम-मुक्त हो सकता है, और जागृति को प्रमाणित कर सकता है। 8. परम्परा-गत आधारों पर चलने से मानव-जाति न्याय-धर्म-सत्य तक नहीं पहुँचा था, इसीलिये भ्रम-मुक्त और अपराध-मुक्त नहीं हुआ था। 9. यदि मानव-परम्परा को निरंतर बने रहने की आवश्यकता समझ में आती है तो उसका भ्रम-मुक्त होने के लिए प्रयास करना भावी हो जाता है। 10. अपनी भाषा-संस्कृति से प्रेम रखने वाले भारतवासियों को भ्रम-मुक्त होकर और विचारधारा के नशे से भी मुक्त होकर वैकल्पिक उपायों पर सोचना चाहिए!