1. पात्रों का वस्तूकरण करता है. 2. इस वस्तूकरण का शिकार केवल स्त्री ही है, आज ऐसा नहीं रह गया है. 3. यह भी प्रश्न किया जा सकता है कि क्या विज्ञापन में स्त्री का वस्तूकरण उचित है. 4. स्त्री को सचेतन होकर अपने वस्तूकरण का विरोध और प्रतिरोध करना ही चाहिए-यह मेरी दृढ मान्यता है. 5. बाज़ार की दृष्टि से देखें तो विज्ञापन की मजबूरी है कि वह वस्तूकरण का इस्तेमाल टेकनीक की तरह करे. 6. साबुन से लेकर अंतर्वस्त्र तक के प्रचार अभियानों में अब स्त्री के साथ-साथ पुरुष मॉडल भी वस्तूकरण के ' शिकार ' हैं. 7. आख़िर चेतना का वस्तूकरण , व्यक्तित्व का विघटन, संवेदना का विच्छेद जैसे पद बीसवीं सदी के मनुष्य को समझने-समझाने की गरज से आये थे। 8. अभिप्राय यह कि विज्ञापन में वस्तूकरण पुरुष और स्त्री दोनों का हो रहा है और इसके लिए किसी एक को दोषी मानना सर्वथा अलोकतांत्रिक है. 9. ' एक्स ' या अन्य डिओडरेंट उत्पादों के विज्ञापन देखें तो समझ में आता है कि किस प्रकार स्त्री का नहीं, पुरुष का वस्तूकरण हो रहा है. 10. अगर नहीं, तो मीडिया की साख के विशेष परिप्रेक्ष्य में इस विसंगति के क्या अर्थ हैं जबकि मीडिया स्वयं नारी के वस्तूकरण के खिलाफ आवाज़ उठाता रहा है?