सारसुधानिधि sentence in Hindi
pronunciation: [ saaresudhaanidhi ]
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- (सारसुधानिधि, वर्ष 2, अंक 25)
- जगपथ दरसावै अचल, सारसुधानिधि पत्र।।
- 13 अप्रैल, 1879 को उन्होंने पं. सदानंद मिश्र के सहयोग से ‘ सारसुधानिधि ‘ निकाला।
- राष्ट्र में स्वराज्य की वापसी एवं समाज का पुनर्जागरण ही ‘ सारसुधानिधि ‘ का मूल स्वर था।
- कवि श्यामसुंदर ने दोहे को ध्यान से देखा तो ' अचल सारसुधानिधि पत्र' वाले स्थान पर रुक गए।
- सारसुधानिधि, उचितवक्ता एवं भारतमित्र जैसे अपने समय के प्रतिष्ठित पत्रों में उन्होंने लेखन एवं संपादन किया।
- १ ३ जनवरी १ ८ ७ ९ में कलकत्ता से प्रकाशित होने वाला ' सारसुधानिधि ' लोकपरक पत्र था।
- सारसुधानिधि और कविवचनसुधा की भाषा यद्यपि भावुकजनों के लिए आदर की वस्तु थी परंतु समय के उपयोग की न थी।
- ‘ सारसुधानिधि ‘ के संपादक संदानंद मिश्र की यह संपादकीय टिप्पणी पत्र के उद्देश्य को बताने के लिए पर्याप्त जान पड़ती है-
- ' कवि श् यामसुंदर ने दोहे को ध् यान से देखा तो ' अचल सारसुधानिधि पत्र ' वाले स् थान पर रुक गए।
- हिंदी पाठकों की उदासीनता से व्यथित होकर ही ‘ सारसुधानिधि ‘ के संपादक ने 5 जनवरी, 1880 के अंक में लिखा था-
- वास्तव में उन्नीसवीं शतब्दी में कलकत्ता के भारत मित्र, वंगवासी, सारसुधानिधि और उचित वक्ता ही हिंदी प्रदेश की रानीतिक भावना का प्रतिनिधित्व करते थे।
- वास्तव में उन्नीसवीं शतब्दी में कलकत्ता के भारत मित्र, वंगवासी, सारसुधानिधि और उचित वक्ता ही हिंदी प्रदेश की रानीतिक भावना का प्रतिनिधित्व करते थे।
- ‘ सारसुधानिधि ‘ में सक्रिय सहयोग देने के पश्चात सन 1880 में पं. दुर्गाप्रसाद मिश्र ने अपने स्वयं के पत्र ‘ उचित वक्ता ‘ का प्रकाशन प्रारंभ किया।
- इसके उपरांत संवत् 1935 में पं. दुर्गाप्रसाद मिश्र के संपादन में ' उचितवक्ता ' और पं. सदानंद मिश्र के संपादन में ' सारसुधानिधि ' ये दो पत्र कलकत्तो से निकले।
- पं. सदानंद द्वारा कलकत्ते से प्रकाशित पत्रिका 'सारसुधानिधि' के मुखपृष्ठ पर श्यामसुंदर कवि द्वारा रचित मंगलाचरण ही प्रकाशित हुआ करता था, जो इस प्रकार था-कुमुदरसिक मन मोदकरि, दरि दुख तम सर्वत्र।जगपथ दरसावै अचल, सारसुधानिधि पत्र।।
- आठ-दस अंक निकलने के बाद ' सारसुधानिधि ' का प्रकाशन बंद हो गया, तो श् यामसुंदर जी ने पं. सदानंद को पत्र लिखा कि ' क् या कारण है कि कई सप् ताह से पत्र नहीं आता।
- पं. सदानंद द्वारा कलकत् ते से प्रकाशित पत्रिका ' सारसुधानिधि ' के मुखपृष् ठ पर श् यामसुंदर कवि द्वारा रचित मंगलाचरण ही प्रकाशित हुआ करता था, जो इस प्रकार था-कुमुदरसिक मन मोदकरि, दरि दुख तम सर्वत्र।
- इस युग के प्रमुख पत्रों में ' बिहार बंधु ', ' कविवचन सुधा ' हरिश्चंद्र मैगज़िन, ब्राह्मण, ' भारतमित्र ', ' सारसुधानिधि ' हिंदी ' वंशावली ', ' हिंदी प्रदीप ' एवं उचित वक्ता आदि अग्रणी रहे।
- 4. पं. गोविंदनारायण मिश्र, यद्यपि ये हिन्दी के बहुत पुराने लेखकों में थे पर उस पुराने समय में वे अपने फुफेरे भाई पं. सदानंद मिश्र के ' सारसुधानिधि ' पत्र में कुछ सामयिक और साहित्यिक लेख ही लिखा करते थे जो पुस्तकाकार छपकर स्थायी साहित्य में परिणत न हो सके।
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