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writ sentence in Hindi

"writ" meaning in Hindiwrit in a sentence
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  • The writ of the central government did not run in some parts .
    केंद्रीय सरकार की हुकूमत कुछ भागो में नही मानी जा रही थी .
  • This writ is to be filed in the postcard which is provided for this purpose.
    2. कोर्ट को दिया गया पोस्टकार्ड भी रिट याचिका मान कर ये जारी की जा सकती है
  • 2. Went to court the writ petition postcards to pretend that they can be released
    2. कोर्ट को दिया गया पोस्टकार्ड भी रिट याचिका मान कर ये जारी की जा सकती है
  • This was to secure its writ outside Kabul and in the Pashtoon-dominated areas .
    सरकार ने ऐसा काबुल के बाहर और पतून भल इलकों में अपनी पकड़े बनाने के इरादे से किया .
  • Appeal from a decision of the writ court lies to the Supreme Court and can take more than ten years .
    रिट के निर्णय पर उच्चतम न्यायालय में अपील की जा सकती है और उसमें भी दस वर्ष से अधिक का समय लग सकता है .
  • It is writ large in its subsequent evolution from its probable origin in some ' subvital ' antocatalytic molecule of protein all the way to man .
    बाद के विकास में यह स्पष्ट दिखाई देता हे जिसके दौरान एक स्वयं उत्प्रेरित प्रोटीन से मनुष्य तक उत्पन्न हुआ है .
  • Mr Vaughan , counsel for Savarkar , made an application for a writ of habeas corpus and also appealed against the decision of the Bow Street court .
    सावरकर के वकील श्री वाग्घन ने बंदी प्रत्यक्षीकरम की याचिका दायर की और बो स्ट्रीट कोर्ट के फैसले के खिलाफ भी अपील की .
  • When arbitrariness and perversion are writ large and brought out clearly , the court cannot shirk its duty and refuse its writ .
    जब मनमानापन और दुष्टता असंदिग़्ध रूप से स्पष्ट हो जाए तो न्यायालय अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ सकता और आदेश जारी करने से इंकार नहीं कर सकता .
  • When arbitrariness and perversion are writ large and brought out clearly , the court cannot shirk its duty and refuse its writ .
    जब मनमानापन और दुष्टता असंदिग़्ध रूप से स्पष्ट हो जाए तो न्यायालय अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ सकता और आदेश जारी करने से इंकार नहीं कर सकता .
  • Thus , as an objective commentator observed , “ the influence of Manchester capitalists is writ large in Indian tariff history ” and has been “ the most damaging feature of British rule ” .
    इस प्रकार , एक निष्पक्ष समीक्षक के शब्दों में , मानचेस्टर पूंजीपतियों का प्रभाव भारतीय सीमा शुल्क के इतिहास में स्पष्ट
  • The Supreme Court , on the request of the Government , withdrew and transferred to itself all the writ petitions pending before various High Courts .
    सरकार के अनुरोध पर उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न उच्च न्यायालयों के सामने लंबित रिट याचिकाओं को वहां से हटाकर स्वयं अपने यहां स्थानांतरित कर लिया .
  • Several writ petitions challenging the validity and constitutionality of the 1985 enactment were also filed in the Supreme Court and various High Courts .
    1985 के अधिनियम की वैधता तथा संवैधानिकता को चुनौती देने वाली अनेक रिट याचिकाएं भी उच्चतम न्यायालय तथा विभिन्न उच्च न्यायालयों में दायर की गई थीं .
  • The petitioners entreated that a writ be issued for proper implementation of the various provisions of the Constitution and Statutes with a view to ending the misery , suffering and helplessness of those labourers .
    याचिकादाताओं ने याचना की कि संविधान के विभिन्न उपबंधों तथा कानूनों के समुचित परिपालन के लिए रिट जारी की जाए ताकि उन मजदूरों का दु : ख , कष्ट एवं लाचारी दूर हो सके .
  • The proceedings conducted by the Industrial Tribunal are judicial proceedings and the decisions and awards are subject to the writ jurisdiction of the High Court under Article 226 of the Constitution .
    औद्योगिक अधिकरण द्वारा संचालित कार्रवाइयां न्यायिक कार्रवाइयां हैं और इसके निर्णय तथा अधिनिर्णय संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता के अधीन होते हैं .
  • 1. Because of this petition / writ, awareness of the public about their own rights and about the role of judiciary increases, this makes the area of fundamental rights very strong, the individual gets many new rights
    1. इस याचिका से जनता मे स्वयं के अधिकारों तथा न्यायपालिका की भूमिका के बारे मे चेतना बढती है यह मौलिक अधिकारों के क्षेत्र को वृहद बनाती है इसमे व्यक्ति को कई नये अधिकार मिल जाते है
  • It needs to be remembered that the remedy through a writ in cases other than those of violation of fundamental rights is not a normal one and is not expected to be granted as a matter of routine .
    लेकिन यह याद रखना चाहिए कि मूल अधिकारों के उल्लंघन के मामलों के अलावा अन्य मामलों में रिट के द्वारा उपचार सामान्य उपचार नहीं है और उसे नित्यचर्या के रूप में प्रदान करने की आशा नहीं की जाती .
  • In response to a civil writ petition -LRB- No . 4771 -RRB- filed in 1993 , the court said : ” Respondents are restrained from taking any further decision or action on regularising any unauthorised colony in Delhi till further orders . ' '
    1993 में दायर दीवानी रिट याचिका ( नं.4771 ) के जवाब में अदालत ने कहा था , ' ' प्रतिवादी अगले आदेश तक दिल्ली में किसी भी अनधिकृत कॉलनी को नियमित करने के लिए कोई फैसल या कार्रवाई न करें . ' '
  • Every day a large number of writs are filed in the High Court and in some High Courts it takes more than ten years to decide a writ .
    उचऋ-ऊण्श्छ्ष्-च नऋ-ऊण्श्छ्ष्-यायालय में प्रतिदिन बहुत बडऋई संख़्या में रिटें फाइल की जाती हैं और कुछ उचऋ-ऊण्श्छ्ष्-च नऋ-ऊण्श्छ्ष्-यायालयों में तो एक रिट का भारत में न्यायालय में निर्णय होने में दस वर्ष से अधिक का समय लग सकता है .
  • The only way by which the decision or proceedings of a Court Martial can , to a very limited extent , be challenged is by way of writ jurisdiction of the Supreme Court and the High Courts under Articles 32 and 226 of the Constitution respectively .
    बस , एक ही मार्ग है जिसके द्वारा किसी कोर्ट मार्शल के निर्णय या कार्रवाई को , सीमित विस्तार में , चुनौती दी जा सकती है और वह है संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के अधीन क्रमश : उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता का प्रयोग करते हुए .
  • Thus the remedy against the Tribunal 's order , if the appellant is not satisfied with it , is either by way of a Writ petition under Article 226 or Article 32 of the Constitution before the High Courts or Supreme Court respectively or under Article 136 of the Constitution before the Supreme Court .
    इस प्रकार यदि अपीलकर्ता अधिकरण के Zकिसी आदेश से संतुष्ट नहीं है तो वह या तो अनुच्छेद 226 अथवा अनुच्छेद 32 के अधीन क्रमश : उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय में रिट याचिका प्रस्तुत कर सकता है या संविधान के अनुच्छेद 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय जा सकता है .
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