1. चतुरस्र योनिमर्धचन्द्रं त्र्यस्र सुवर्तुलम॥ षडसां पङ्कजाकारमष्टास्र तानि नामतः ।2. भरत ने तीन प्रकार के नाट्य मण्डप बताये हैं-विकृष्ट चतुरस्र , त्रयस्र। 3. भरत ने तीन प्रकार के नाट्य मण्डप बताये हैं-विकृष्ट चतुरस्र , त्रयस्र। 4. क्योंकि सर्वसिद्धिकर कुण्ड चतुरसमुदाहृयम-चतुरस्र कुण्ड सर्व सिद्धि करने वाला है । 5. चतुरस्र मंडप की चौड़ाई लंबाइ के बराबर, और विकृष्ट की लंबाई से आधी होगी।6. चतुरस्र मंडप की चौड़ाई लंबाइ के बराबर, और विकृष्ट की लंबाई से आधी होगी।7. यहाँ से कुछ ही दूरी पर बड़े-बड़े पत्थरों से बनी हुई एक चतुरस्र मीनार है, जिसे लोग ऊमदीवट कहते हैं। 8. आकृति के भेद से पुराणों में प्रासाद के पाँच भेद किए गए हैं-चतुरस्र , चतुरायत, वृत्त, पृत्ताय और अष्टास्र । 9. यहाँ से कुछ ही दूरी पर बड़े-बड़े पत्थरों से बनी हुई एक चतुरस्र मीनार है, जिसे लोग ऊमदीवट कहते हैं। 10. यहाँ से कुछ ही दूरी पर बड़े-बड़े पत्थरों से बनी हुई एक चतुरस्र मीनार है, जिसे लोग ऊमदीवट कहते हैं।